वर्षा ऋतु
Varsha Ritu
पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण ऋतुयें होती है। ऋतुये छः होती है, पर उनमें से मुख्य तीन ऋतुये हमारे, यहाँ होती है सर्दी, गर्मी और बरसात। सभी ऋतुयें का विशेष महत्व है। इनमें वर्षा ऋतु को जीवन दायिनी ऋतु माना गया है।
भारतवर्ष में वर्षा का मौसम मध्य जून में प्रारम्भ होकर मध्य अक्टूबर तक रहता है। वर्षा ऋतु के पहले गर्मी से चारों ओर हाहाकार की स्थिति हो जाती है। नदी, नाले, कुएँ, तालाब सभी सूख जाते है। प्रकृति उजाड़ दिखाई देती है। दोपहर के समय गर्म लू मानो कोड़े बरसाती है। पश पक्षी पानी की तलाश में इधर उधर भटकते फिरते है। पानी बिना हर प्राणी व्याकुल दिखाई देता है।
जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह में यह धरती तवे की भांति जलने लगती है। इससे निकलती हुई वाष्प आकाश में घिरने लगती है। समुद्र खौल उठता है। परिणामस्वरूप आकाश में बादल घिरने लगते है और थोडे ही समय में बूंदा-बाँदी के साथ रिमझिम बरसात शुरू हो जाती है। इस जल दृष्टि के साथ हवा का तेज झोंका भी वन उपवनों सहित नदी नालों को अपनी मस्त बयार से मस्त बना डालता है। जन-जन में खुशी के कंठ फूट चलते है। पशु पक्षी अपनी स्वतन्त्रता की मस्ती से झूमने लगते है। धरती का तप्त आँचल शीतल और सुहावनी हरियाली से सज धज जाता है।
गाँव का तो दृश्य ही बदल जाता है। कृषक अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते है। बोआई और निराई का काम शुरू हो जाता है। थोडे ही दिनों में खेतों में फसल लहलहाने लगती है। प्रकति में नई बहार आ जाती है। लगता है धरती माता ने हरी साड़ी पहन ली हो। पृथ्वी की प्यास बुझ जाती है। प्राणी, जीव जन्तु राहत की सांस लेते है। किसानों को जीवन मिलता है। वर्षा ऋतु से वातावरण सर्वत्र सुहावना और मन मोहक हो जाता है। नदी नालों में अपार जल भर जाता है। चारों ओर से उनमें बाढ़ आ जाती है। वे इठलाते हुए समुद्र के गोद में चले जाते है। जलाभाव के कारण दुःख जलचर अब सुखद जीवन जीने लगते हैं। पेड-पौधे नए-नए पत्तों से ढक जाते है। इनमें नए-नए फूल और फल आने लगते है। फूलों के उपर भौरों का दल मंडराने लगता है और फलों के लिए आतुर पक्षीगण इन पर अपना बसेरा करने लगते हैं।
बाग बगिचो की छटा निराली हो जाती है। रंग बिरंगे फलों का आकर्षण देखते ही बनता है। चारों ओर सुगन्धयुक्त वायु का झोंका हमारे ससुप्त भावों को एक ऐसा मीठा अनुभव देने लगता है। धरती का आँचल बीजों के अंकुरों से सजने लगता है। पतले बढ़ते ये अंकुर बादलों के कभी मंद और कभी तीव्र जल प्रहार के साथ साथ कड़ कड़ाहट और गड़गड़ाहट की डांट फटकार को भी डरते काँपते सहते रहते है।
एक ओर वर्षा हमें जल, भोजन ओर शीतलता प्रदान करती है। वहीं दूसरी ओर विनाश, भयंकर बीमारियां, गंदगी का साम्राज्य भी प्रदान करती है। जीवन के लिए वर्षा बहुत ही आवश्यक है। वर्षा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि सरकार चाहे तो वर्षा से होने वाली हानियों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। इस प्रकार वर्षा ऋतु हमें जीवन रस देकर हमारी रक्षा करता है। वर्षा ऋतु से जहाँ हमे लाभ और आनन्द प्राप्त होता है वहाँ इससे हमें बड़ी हानि और बड़े कष्ट भी झेलने पड़ते हैं।
अधिक या कम वर्षा से जो पीड़ा होती है वह असहनीय है। कम वर्षा सूखे और अकाल का कारण बनती है, अधिक वर्षा और बाढ़ और विनाश का कारण। अत्यधिक वर्षा नदी नालों में बाढ़ लाकर विनाश करती है, पशु में जाते है, कच्चे झोंपड़े धरती पर गिर जाते है। सुन्दर भवन भी शोषण वर्षा का सामना नहीं कर पाते। यदि इस समय इस जल को नियन्त्रित किया जा सके तो वर्षा ऋतु उपकारिणी कहलायेगी।
अतएव हमें वर्षा ऋतु का स्वागत इसके लाभ को ही विचार करके नहीं करना चाहिए अपितु हमे यह सोचना विचारना चाहिए कि इसकी हानियाँ भी मिलती है। जो निश्चित रूप से है और जिनहें हमें स्वीकारना भी पड़ता है। अतएव हमें वर्षा ऋतु का स्वागत सहर्ष करना चाहिए। हाँ प्रकृति देवी से हमें यही प्रार्थना करनी चाहिए कि कोई नुकसान ना हो।
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