बुद्धिमान मछुआरा
Budhiman Machuara
एक बार एक देश की राजधानी में एक पशु मेला आयोजित किया गया। मेले में दूर-दूर से लोग अपने पशुओं को लेकर आए थे। देश के राजा और रानी को भी मेले में आना था और सभी लोग उत्सुकता से राजपरिवार की प्रतीक्षा कर रहे थे।
मेले में एक अस्तबल में घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया। घोड़े का बच्चा इतनी भीड़ देखकर भयभीत हो गया और वहाँ से भागकर एक बैलगाड़ी के दो बैलों के बीच छिप गया। अस्तबल का मालिक घोड़े के बच्चे के पीछे-पीछे उसे लेने पहुँचा तो बैलगाड़ी चालक ने बच्चा देने से मना कर दिया। वह बोला, “खबरदार! जो तुमने इसे हाथ भी लगाया। अब यह मेरा है, क्योंकि यह स्वयं ही मेरे पास आया है। तुम्हारा इस पर कोई अधिकार नहीं रहा।" "यह घोड़े का बच्चा मेरा है। अभी कुछ देर पहले ही तो घोड़ी ने इसे जन्म दिया है।
यह लोगों की भीड़ से डरकर मेरे अस्तबल से भागा है। इसे मुझे दे दो।" अस्तबल का मालिक चिल्लाया। इस बात पर दोनों में झगड़ा होने लगा। तभी वहाँ राजपरिवार पहुँच गया। दोनों ने अपना-अपना पक्ष राजा के सामने रखा। राजा ने दोनों का पक्ष सुनकर निर्णय लिया कि घोड़े का बच्चा बैलगाड़ी चालक के पास रहेगा क्योंकि उसने स्वयं ही । बैलों को अपना माँ-बाप माना है। वहाँ पर एक बुद्धिमान मछुआरा भी खड़ा था। उसे राजा का न्याय सही नहीं लगा। अगले दिन वह अस्तबल के मालिक को लेकर राजमहल के बाहर रास्ते में खड़ा हो गया। जैसे ही उसने राजा को राजमहल से निकलते हुए देखा, उसने अस्तबल
के मालिक के साथ मिलकर रास्ते की मिट्टी में मछली का जाल ऐसे हिलाना शुरू कर दिया जैसे वह मछली पकड़ रहा हो।
यह देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गया और उसने मछुआरे से पूछा, “तुम यहाँ रास्ते में क्या कर रहे हो?" "हम मछली पकड़ रहे हैं, महाराज।", मछुआरे ने उत्तर दिया। "परंतु यहाँ न तो पानी है और न ही मछलियाँ? बिना पानी के भी कभी मछलियाँ होती हैं क्या?", राजा ने कहा। "महाराज यदि घोड़े के बच्चे के जन्मदाता बैल हो सकते हैं तो मिट्टी में मछलियाँ क्यों नहीं हो सकतीं।" मछुआरा बोला। राजा मछुआरे के आशय को समझ गया। उसे अपनी गलती का आभास हो गया। उसने तुरंत बैलगाड़ी चालक को आदेश दिया कि वह घोड़े के बच्चे को अस्तबल के मालिक को लौटा दे।
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