सियार और जंगली सुअर 
Siyar Aur Jungli Suvar



एक जंगल में एक सियार रहता था। वह बहुत ही मस्तमौला था। वह हर हाल में खुश रहता था। परिश्रम से उसका दूर-दूर का वास्ता नहीं था।

बार वह सियार अपनी ही धुन में जंगल में घूम रहा था। अचानक उसे एक विचित्र स्वर सुनाई दिया। उसने अपने आस-पास दृष्टि दौडाई तो उसे एक जंगली सुअर दिखाई दिया, जो कि अपने दाँत एक पेड़ के तने पर घिस रहा था। यह ध्वनि उसके दाँतों के घिसने की थी।

सियार सुअर को देखकर सोचने लगा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। पर उसे कुछ समझ नहीं आया। सियार को सुअर से कोई खतरा नहीं होता। सियार सुअर के पास गया और उसने नम्रतापूर्वक सुअर से बोला, “नमस्कार भाई साहब! आप कैसे हैं?" 

सुअर ने उत्तर दिया, “मैं अच्छा हूँ। आप कैसे हैं?" 

"क्या मैं जान सकता हूँ कि आप क्या कर रहे हैं?", सियार ने मुस्कुरा कर पूछा। “मैं अपने दाँत पैने कर रहा हूँ।" सुअर ने सपाट-सा उत्तर दिया। 

“परंतु क्यों? मुझे तो आस-पास न कोई शिकारी दिखाई दे रहा है और न ही कोई अन्य खतरा जान पड़ता है। फिर आप को क्या आवश्यकता पड़ गई। ऐसी तैयारी करने की जो आप अपने दाँत पैने कर रहे हैं?", सियार ने जिज्ञासावश पूछा। 

यह सुनकर सुअर मुस्कुरा दिया। वह बोला, “क्या यह समझदारी है कि कैंआ तभी खोदा जाए, जब प्यास लगी हो? हम सब एक जंगल में रहते हैं, जहाँ हमारे शत्रु भी हमारे समान ही स्वतंत्रता से घूमते हैं। कौन जानता है कि कब किस शत्रु से आमना-सामना हो जाए? इसलिए मैं अभी से अपने दाँत पैने कर रहा है ताकि जब आवश्यकता पड़े तो इनका उपयोग किया जा सके। हो सकता है कि अभी इनके उपयोग करने की जरूरत न पड़े लेकिन कल किसने देखा है? हो सकता है कि मुझे आगे इन्हें पैना करने का समय ही न मिले और शत्रु मेरे सामने हो। स्वयं शत्रु का मुकाबला करने में सक्षम नहीं होऊँगा क्योंकि मेरे दाँत पैने नहीं होंगे। शत्रु प्राण भी ले सकता है। इसलिए समझदारी यही है कि हम हमेशा सावधान रहें। यदि आज ही मैं अपने दाँत पैने कर लूँगा तो शत्रु का डटकर मुकाबला कर उसे हरा भी सकता हूँ। और अपनी जान बचा सकता हूँ।" 

सियार सअर की दूरअंदेशी देखकर चकित रह गया। उसने उसकी बुद्धिमानी की प्रशंसा की और बोला, "मित्र मुझे तुम्हारे जैसे बुद्धिमान मित्र पर गर्व है। यदि हम सभी तुम्हारी तरह दूर अंदेशी बन जाएँ तो कभी विपत्ति में न पड़ें।

शिक्षाः बुरा समय बता कर नहीं आता अतः सदैव तैयार रहें।