स्वार्थी मछुआरा 
Swarthi Machuara



एक दिन एक मछुआरा मछली पकड़ने का जाल लेकर घर से निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर वह एक साफ पानी के तालाब पर पहुँचा। तालाब के चारों ओर लकड़ी की चारदिवारी बनी हुई थी, जिससे कि कोई जानवर पानी को गंदा न कर सके। तालाब के निकट ही एक गाँव बसा हुआ था। उस गाँव के लोग पीने का पानी तालाब से ही भरते थे। इसीलिए उन्होंने तालाब के चारों ओर चारदिवारी खड़ी की हुई थी।


मछुआरे ने चारदिवारी की लेश-मात्र भी परवाह नहीं की। उसने तालाब में ढेर सारी छोटी-बड़ी मछलियों को तैरते हुए देख लिया था। मछुआरे ने तालाब में अपना जाल फेंक दिया। फिर वह तालाब के पानी को हिलाने लगा, जिससे तालाब की जललियाँ तालाब के तल से निकल कर सतह पर आ जाएँ और उसके जालम फंस जाएँ। परंतु पानी हिलाने के कारण तालाब की मिट्टी से पानी गंदा होने लगा।


तभी अचानक वहाँ से गाँव का एक निवासी गुजरा। उसने जब मछुआरे को पानी गंदा करते हुए देखा तो मछुआरे से प्रार्थना की कि वह ऐसा न करे क्योंकि पानी गंदा हो जाएगा और फिर उनके पीने योग्य नहीं रह जाएगा। परंतु मछुआरे ने उस निवासी की बात को अनसुना कर दिया। वह बोला, "मेरे काम में बाधा मत डालो। देखते नहीं, मैं मछलियाँ पकड़ रहा हूँ। तुम्हारा शोर सुनकर वे डरकर भाग जाएँगी। जाओ यहाँ से।" और वह पानी को और जोर-जोर से हिलाने लगा।


वह व्यक्ति मछुआरे के व्यवहार पर हैरान रह गया। परंत उसने फिर भी मछआरे को समझाते हुए कहा, "देखो भाई! तुम किसी और तालाब में जाकर मछलियाँ पकडो। हम गाँव वाले इसी तालाब का पानी पीते हैं। इसके अलावा हमारे पास पीने के पानी का कोई स्रोत नहीं है।"


मछुआरा बोला, "पानी का स्रोत नहीं है तो मैं क्या करूँ? तुम्हें कहा न, जाओ यहाँ से।"


वह व्यक्ति मछुआरे को वहीं छोड़ कर कुछ पहलवान लेने के लिए गाँव लौट गया। कुछ ही देर में हाथ में डंडे लिए हुए हट्टे-कट्टे पहलवानों को अपनी ओर आता देख कर मछुआरा भय से पीला पड़ गया। इससे पहले गाँववाले मछुआरे से कुछ कहते, मछुआरे ने पहले ही पानी में से अपना जाल खींच लिया और भागने के लिए तैयार हो गया। मछुआरा गाँव के पहलवानों को पास आया देख भयभीत होकर बोला, "मैं अपनी मूर्खता व स्वार्थी प्रवृत्ति पर बहुत लज्जित हूँ। मुझे इस तालाब के साफ पानी को गंदा नहीं करना चाहिए था। मुझे क्षमा कर दीजिए।"


ऐसा कहते ही मछुआरा वहाँ से नौ-दौ ग्यारह हो गया और गाँव के निवासी भी अपने गाँव लौट गए।


शिक्षा: लातों के भूत बातों से नहीं मानते।