चतुर ठिठोलिया 
Chatur Thitholiya



बगदाद के खलीफा के दरबार में एक चतुर ठिठोलिया था। वह ठिठोलिया दिन भर खलीफा व बाकी सभी दरबारियों का तरह-तरह से मनोरंजन करता रहता था। यही कारण था कि वह खलीफा का बहुत प्रिय था।

एक दिन खलीफा जब अपने महल में टहल रहे थे तो उन्हें अपने दरबार से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। खलीफा तुरंत अपने दरबार में पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि कुछ संतरी ठिठोलिये को निर्दयता से पीट रहे हैं। यह देखकर खलीफा क्रोधित हो गए और गरज कर बोले, "रुक जाओ। खबरदार! अगर किसी ने उसे मारा। जानते नहीं यह कौन है?" 

"यह ठिठोलिया बेहद दुष्ट हैं, जहाँपनाह! आप इसके भोलेपन पर मत जाइए। यह शक्ल से जितना भोला और सीधा दिखाई देता है अंदर से उतना ही दुष्ट है। इसकी रग-रग में धूर्त्तता समाई हुई है। आप भी इसका अपराध सुनेंगे तो इसे दंड देंगे।", सभी संतरी एक स्वर में चिल्लाए।

यह सुनकर खलीफा ने पूछा, "आखिर इसने ऐसा क्या किया है जो तुम सब इसे इतनी निर्दयता से मार रहे हो?" 

संतरी बोले, "इसकी इतनी मजाल कि अपनी औकात भूलकर आज यह हमारे जहाँपनाह के तख्त पर बैठा हुआ था। अब आप ही बताइये कि इसका इतना बडा अपराध देखकर क्या हम चुप बैठ सकते थे। कोई जहाँपनाह के तख्तेताज पर नजर डाले तो हम यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।" 

"कोई बात नहीं। ऐसा इसने अनजाने में कर दिया होगा। तुम सब इसी वक्त यहाँ से दफा हो जाओ।" खलीफा ने कहा। 

उसके बाद खलीफा ने बहुत प्यार से ठिठोलिये से पूछा, "बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया? तुम तख्त पर क्यों बैठे थे?" परंतु ठिठोलिया उस प्रश्न का उत्तर देने की बजाए रोने लगा। 

खलीफा ने उसे समझाते हुए कहा, "रोओ मत। तुम नहीं बताना चाहते तो मत बताओ। मैं तुमसे बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। चलो अब जरा मुस्कुरा कर दिखाओ।"

इस पर ठिठोलिया बोला, "जहाँपनाह! मैं अपने लिए नहीं, आपके लिए रो रहा हूँ। 

खलीफा ने आश्चर्य से पूछा, "मेरे लिए!" "बेशक जहाँपनाह! मैं आपके लिए ही रो रहा हूँ। मैं यह सोच-सोचकर रो रहा हूँ कि अगर मुझे थोडे से समय के लिए तख्त पर बैठने पर इन संतरियों ने इतनी बर्बरता से मारा है तो इन्होंने आपको कितना मारा होगा, क्योंकि आप तो तख्त पर बरसों से बैठ रहे हैं।" ठिठोलिये ने कहा। 

यह सनकर खलीफा ठहाके लगा कर हँस पडे और उन्होंने ठिठोलिये को उसके परिहासजनक उत्तर के लिए ढेर सारा इनाम भी दिया। 

शिक्षाः चतुराई से अद्भुत परिणाम पाए जा सकते हैं।