किसान तथा उसके पुत्र 
Kisan Tatha Uske Putra



एक बार एक गाँव में एक किसान रहता था। किसान के चार पुत्र थे जिन्हें एक दूसरे से कोई लगाव नहीं था। वे सदैव एक दूसरे से छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे। 

चारों पुत्रों का आपसी व्यवहार किसान के लिए चिंता का गंभीर विषय बना हुआ था। किसान को अपने पुत्रों का भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था। बहुत सोच विचार करने पर किसान ने मन ही मन एक योजना बनाई। एक दिन वह बिस्तर पकड़ कर लेट गया और ऐसा जताने लगा जैसे उसका अंतिम समय निकट हो। फिर उसने अपने चारों पुत्रों को बुलाया और कहा, “मेरे प्रिय पुत्रो! अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ और किसी भी समय इस दुनिया को छोड़ सकता हूँ। मेरी अंतिम इच्छा है कि तुम लोग मुझे लकड़ी का एक गट्ठर ला कर दो।"

किसान के पुत्रों ने सोचा कि हमें कम से कम अपने पिता की अंतिम इच्छा तो अवश्य पूरी करनी चाहिये। ऐसा सोचकर चारों लड़कों ने पेड़ की छोटी-छोटी टहनियों को काटकर उसका गट्ठर बनाया और अपने पिता को दे दिया। 

किसान के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने अपने चारों पुत्रों को एक-एक कर के लकड़ी का गट्ठर तोड़ने के लिए कहा। चारों पुत्रों ने एक-एक करके अपनी साक्ति से लकड़ी का गट्ठर तोड़ने की कोशिश की परंतु कोई भी सफल नहीं हो पाया। 

अब किसान ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को गट्ठर खोलने के लिए कहा। गट्ठर खुलने के बाद किसान ने सभी पुत्रों को एक-एक लकड़ी का टुकड़ा दिया और उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी भाईयों ने ऐसा चुटकियों में लकड़ियाँ तोड़ दीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनका पिता आखिर चाहता क्या है? क्या यह बावरा हो गया है जो व्यर्थ के कामों में हमें उलझा रहा है। 

फिर किसान ने अपने पुत्रों से कहा, "मेरे बच्चो! मैं जल्दी ही यह संसार त्यागने वाला हूँ। यदि मेरे बाद तुम इस लकड़ी के गट्ठर के समान संयुक्त हो कर रहोगे तो कोई भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। परंतु यदि तुम गट्ठर से अलग हुई लकड़ियों के समान रहोगे तो तुम सब एक-एक करके पराजित हो जाओगे।" पिता की बात चारों की समझ में आ गई थी। वे चारों एक स्वर में बोले, “पिताजी! हम आपसे वादा करते हैं कि अब हम आपस में कभी नहीं लड़ेंगे। हमेशा मिल-जुलकर रहेंगे।" किसान ने अपने चारों पुत्रों को गले से लगा लिया।

शिक्षा: एकता में शक्ति है।