मूर्ख गधा
Murakh Gadha
एक समय की बात है। एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। उसने बोझा ढोने के लिए एक गधा पाला हुआ था। वह गधे पर विभिन्न प्रकार का सामान लाद कर बाजार में बेचने के लिए ले जाता था। यही उसकी आमदनी का जरिया था। व्यापारी क्रूर व्यक्ति था। वह हमेशा गधे पर अत्यधिक भार लादता था जिसके कारण बेचारा गधा बहुत ही मुश्किल से चल पाता था। उसका मानना था जितना अधिक सामान उतनी अधिक बिक्री और उतना अधिक पैसा। वह कभी गधे के बारे में नहीं सोचता था।
एक दिन व्यापारी ने गधे के ऊपर नमक के भारी-भरकम बोरे लाद दिए। गधा इतना भार उठा कर बहुत ही धीमी गति से चल पा रहा था। उसके लिए नमक से भरे बोरों का भार उठाना मुश्किल हो रहा था। बाजार पहुँचने के लिए रास्ते में एक नहर पार करनी पड़ती थी।
उस दिन नहर पार करते हुए गधे को किसी पत्थर से ठोकर लगी और वह नहर में गिर गया। इस कारण थोड़ा नमक पानी में घुल गया। व्यापारी ने गधे को नहर से बाहर निकाला। जब गधा नहर से बाहर निकलकर फिर से अपने पैरों पर उठ खड़ा हुआ तो उसे लगा कि उसकी पीठ पर भार कुछ कम हो गया है। मूर्ख गधा यह मानने लगा कि पानी में भीगने से सभी वस्तुएँ हल्की हो जाती हैं।
कुछ दिन बाद व्यापारी ने गधे की पीठ पर रूई के कुछ बोरे लाद दिए। यद्यपि बोरों का बोझ अधिक नहीं था, परंतु वह गधा उसे और हल्का करना ना था। इसलिए जब वह नहर पार करने लगा तो वह जानबूझ कर लडखडा कर नहर में गिर गया।
परंतु इस बार बोरों में भरी रूई पानी को सोख कर और अधिक भारी हो गई। जब गधे ने उठने की कोशिश की तो उसने पाया कि रूई के भार से वह खड़ा भी नहीं हो पा रहा है। तभी व्यापारी उसे नहर से बाहर निकालने आ गया। गधे को उठता देखकर व्यापारी ने उस पर कोड़े बरसाने शुरू कर दिए। कोड़े खाकर गधे को मजबूरन खड़े होकर सारा भार उठाना पड़ा। अब गधे को यह आभास हो गया कि भीगने से सभी वस्तुएँ हल्की नहीं होतीं अपितु कुछ वस्तुएँ भारी भी हो जाती हैं।
इस प्रकार मूर्ख गधे को सबक मिल गया और वह समझ गया कि कार्य को सदा संक्षिप्त रूप देने की कोशिश से वह बिगड़ भी सकता है। इसलिए परिणाम के बारे में अच्छी तरह सोच-विचार कर ही कार्य करना चाहिए।
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