सच्चा मित्र
Sacha Mitra
एक जंगल में एक खरगोश रहता था। वह बहुत नेक दिल जानवर था। वह सबके साथ मित्र भाव से रहता था। वह अक्सर सबकी सहायता किया करता था। यूँ तो सभी जानवर उसके दोस्त थे लेकिन घोड़ा, साँड और मेढा से उसकी ज्यादा पटती थी।
जंगल के सभी जानवर खरगोश के अच्छे स्वभाव की प्रशंसा किया करते थे। वे प्रायः खरगोश से कहते थे, "तुम हमारे लिए इतना कुछ करते हो। कभी हमें भी मौका दो कि हम भी तुम्हारे लिए कुछ कर सकें।"
एक दिन खरगोश के पीछे कुछ शिकारी कुत्ते पड़ गए। खरगोश निकट ही एक झाड़ी में छुप गया। खरगोश के मन में विचार आया कि इस समय यदि वह किसी मित्र की सहायता ले तो वह जंगली कुत्तों से बच सकता है। वैसे भी वह अपने हनों की कितनी ही बार मदद कर चुका है। तभी अचानक उसका एक दोस्त देता झाडियों के पास से निकला। खरगोश घोड़े को देखकर बहत खश हुआ। को अपने बचने की आशा दिखाई देने लगी। उसने घोड़े से अपने बचाव के लिए महायता माँगी तो घोड़ा बोला, "माफ करना मित्र! मैं तुम्हारी सहायता जरूर करता, लेकिन इस समय में जरा जल्दी में हूँ" और ऐसा कह कर घोड़ा तत्काल वहाँ से चला गया।
कुछ समय बाद खरगोश का एक दूसरा मित्र वहाँ से गुजरा। वह एक पैने सींगों वाला तंदरूस्त साँड था। खरगोश ने साँड से भी सहायता माँगी परंतु साँड ने भी कहा, "मुझे क्षमा करना मित्र !” मेरे कुछ मित्र मैदान में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुझे पहले ही बहुत देरी हो चुकी है, अब मैं और देर नहीं कर सकता। मुझे वहाँ शीघ्र पहुँचना है।"
उसके बाद वहाँ से खरगोश का तीसरा मित्र एक मेढ़ा निकला। खरगोश ने उससे भी सहायता माँगी। मेढ़ा बोला, "मित्र! शिकारी कुत्तों से लड़ना मेरी प्रतिष्ठा पर ठेस होगी। इसलिए मैं इस विषय में आपकी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा।"
खरगोश को समझ में आ गया था कि झूठे मित्र खतरे के समय साथ नहीं देते इसलिए उन पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
अब तक शिकारी कुत्ते खरगोश के बहुत निकट आ चके थे। उन्होंने खरगोश को झाड़ियों में से खींचा और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस प्रकार बेचारे खरगोश को अपने झूठे दोस्तों के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी।
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