लालच बुरी बला है 
Lalach Buri Bala Hai



बहुत पहले की बात है। किसी शहर में एक बूढ़ी औरत रहती थी। उसका कोई नहीं था। वह अकेली रहती थी। इसलिए अपनी आजीविका चलाने के लिए वह कड़ी मेहनत करती थी। प्रति दिन की कमाई से वह भविष्य के लिए कुछ पैसे बचाकर रख लेती थी क्योंकि वह जानती थी कि यह पैसे उसके तब काम आयेंगे, जब वह अपने वृद्ध शरीर के कारण काम नहीं कर पाएगी। उसे कोई देखने वाला भी नहीं है तो उसे किसी के आगे हाथ पसारने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 


एक दिन वह बूढ़ी औरत कुछ खरीददारी करने के लिए बाजार गई। वहाँ उसे एक बहुत सुंदर मुर्गी दिखाई दी। बुढ़िया को वह मुर्गी इतनी पसंद आई कि उसने वह खरीद ली। घर आकर उसने बहुत प्यार से मुर्गी को खाना खिलाया और एक दड़बे में रख दिया। अगली सुबह जब बुढ़िया उठी तो उसने देखा कि मुर्गी ने एक अंडा दिया था, जो चाँदी का था। उसे देख कर बुढ़िया आश्चर्यचकित रह गई। मुर्गी प्रतिदिन एक चाँदी का अंडा देती थी। इस तरह बुढ़िया के पास बहुत सारे चाँदी के अंडे हो गए। उसने काम करना छोड़ दिया और अंडे बेच कर अपनी आजीविका चलाने लगी। 


कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। अब क्योंकि बुढ़िया के पास कोई काम तो था नहीं, सो उसके दिमाग में भी बुरे-बुरे विचार आने लगे। उसने सोचा, 'अगर मैं मुर्गी को अधिक भोजन दूंगी तो मुर्गी मुझे अधिक अंडे देगी और इस तरह मैं बहुत धनवान हो जाऊँगी।' अब तो बुढ़िया ने लालचवश मुर्गी को दिन में कई बार भोजन देना शुरू कर दिया। 


अत्यधिक भोजन खाने के कारण मुर्गी का पेट खराब हो गया और वह बीमार पड़ गई। परंतु बुढ़िया की समझ में अभी भी नहीं आया कि अत्यधिक भोजन मुर्गी के लिए हानिकारक है। वह उसे उसी तरह भोजन खिलाती रही। यदि मुर्गी नहीं भी खाती तो उसे जबरदस्ती खिलाती। अब तो मुर्गी ने अंडा देना एकदम बंद कर दिया। परन्तु इस पर भी बुढ़िया की आँखें नहीं खुली और वह मुर्गी को वैसे ही भोजन देती रही। मुर्गी का हाजमा पूरी तरह खराब हो गया और इस तरह एक दिन वह मुर्गी चल बसी। 


तो बच्चो! याद रखना आवश्यकता से अधिक भोजन करना कम भोजन करने से अधिक हानिकारक होता है। इससे पाचन क्रिया तो खराब होती ही है दूसरी भी बहुत सी बीमारियाँ लगती हैं। उतना ही भोजन लो जितने की आवश्यकता हो। दूसरा, बुढ़िया की तरह लालच कभी मत करना। संतोष परम धन है।

शिक्षाः लालच बुरी बला है।