पूँछकटी लोमड़ी 
Punchkati Lomdi



एक दिन एक लोमड़ी जंगल में भोजन की तलाश में भटक रही थी। तभी वह शिकारी के बिछाए हुए फँदे में फँस गई। बहुत संघर्ष करने पर वह फंदे से छूट तो गई परन्तु उसे अपनी पूँछ से हाथ धोना पड़ा।

लोमड़ी को अपनी पूँछ खोने का बहुत दुख तो हुआ ही, साथ ही उसे बाकी लोमड़ियों के सामने जाने में शर्म भी आने लगी। उसे लगा, अब बाकी सारी लोमड़ियाँ उसका बहुत मजाक उड़ायेंगी और उसे पूँछकटी लोमड़ी के नाम से बुलाने लगेंगी। अपनी हीन भावना से छुटकारा पाने के लिए उसके मन में विचार आया कि क्यों न सभी लोमड़ियों को किसी तरह उनकी पूँछ कटवाने के लिए मना लूँ। इस तरह जब सभी लोमड़ियाँ मेरी तरह दिखने लगेंगी तो कोई मेरा मजाक नहीं उड़ायेगा। 

लोमड़ी ने अपनी पूँछ के बारे में किसी को बताए बिना अन्य सभी लोमड़ियों की एक सभा बुलाई।  सभा में सभी के लिए अच्छे भोजन और मनोरंजन का प्रबन्ध किया गया। सभा के अंत में लोमड़ी ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा. "बहनो! मेरी बात ध्यान से सुनिये। मैं एक महत्वपूर्ण व गंभीर विषय पर आप सबकी भलाई के लिए कुछ कहना चाहती हूँ।" 

सभा में उपस्थित सभी लोमड़ियाँ ध्यान से उसकी बात सुनने लगीं। लोमड़ी बोली, "हम सबके पास एक पूँछ है जो कि हमारे शरीर पर बोझ है। यह कितनी भारी और भद्दी दिखती है। यह किसी काम की भी नहीं है। जरा सोचिये अगर यह न होती तो हम शिकार पकड़ने के लिए कितना तेज दौड़ सकते हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि हम सभी को इस अनुपयोगी पूँछ को कटवा देना चाहिये।" 

सभी लोमड़ियाँ आश्चर्य से एक दूसरी का मुँह ताकने लगीं। लेकिन तभी एक चतुर लोमड़ी की दृष्टि उस लोमड़ी की कटी हुई पूँछ पर पड़ी। वह बोली, "क्षमा करना लोमड़ी रानी! तुम्हें हमारी पूँछ कभी इतनी बदसूरत नहीं दिखती अगर तुम्हारी पूँछ सही सलामत होती। तुम्हारी कटी पूँछ ज्यादा दिन तक नहीं छुप सकती थी और अब चूंकि तुम्हारी पूँछ नहीं रही तो तुम चाहती हो कि हम भी अपनी पूँछ कटवा लें। तुमने सोचा होगा कि पूँछकटी होने पर सब तुम्हारा मजाक उड़ाएँगे और यदि तुम हमारी भी पूँछे कटवा दोगी तो तुम्हें कोई नहीं चिढ़ाएगा। तुम तो बहुत स्वार्थी निकली।" 

यह सुनकर पूँछकटी लोमड़ी शर्म से पानी-पानी होकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गई ।

शिक्षा: छल-कपट से कुछ हाथ नहीं लगता।