लोमड़ी तथा बकरी 
Lomdi Tatha Bakri



एक बार एक लोमड़ी भोजन की तलाश में एक गाँव में घूम रही थी। उसे घूमते हुए बहुत देर हो गई थी, पर खाने को कुछ नहीं मिला। शाम होने लगी थी। हल्का अंधेरा घिर आया था। दुर्भाग्यवश, लोमड़ी एक कुँए में गिर गई। बहुत प्रयास करने पर भी वह कुँए से बाहर नहीं निकल पाई। थक कर वह नीचे बैठ गई और सुबह होने की प्रतीक्षा करने लगी। 

उसने सोचा कि सुबह लोग कुँए पर पानी भरने के लिए आएँगे। जब वे रस्सी बंधी बाल्टी या मटका लटकाएँगे तो मैं रस्सी पकड़कर बाहर निकल जाऊँगी। सिर्फ रात भर की ही तो बात है। सुबह काफी देर तक वह प्रतीक्षा करती रही पर कोई पानी भरने नहीं आया तभी कुँए के पास से एक बकरी गुजरी। बकरी प्यासी थी। उसने कुँए में झाँक कर देखा तो उसे कुँए के अंदर लोमड़ी दिखाई दी। बकरी ने आश्चर्य से पूछा, "लोमड़ी बहन, तुम कुँए के अंदर क्या कर रही हो?" "मुझे बहुत जोरों की प्यास लगी थी, इसलिए मैं कुँए का ठंडा पानी पीने के लिए नीचे उतरी हूँ। लेकिन यह पानी ठंडा ही नहीं मीठा भी है। अगर चाहो तो तुम भी नीचे आकर ठंडे व मीठे पानी का आनंद ले सकती हो।" लोमड़ी ने धूर्तता से कहा। 

"सच में! परंतु हम कुँए से बाहर कैसे निकलेंगे?", बकरी ने बहुत मासूमियत से पूछा। 

लोमडी ने बकरी को दिलासा देते हुए कहा, "बाहर निकलना बहुत आसान है। मैं तुम्हारी मदद करूँगी। तुम चिंता मत करो। भीतर आ जाओ और पानी पी लो।" 

मूर्ख बकरी लोमड़ी की बातों में आ गई और कुँए के अंदर कूद गई। जब उसने कुँए का ठंडा पानी पी लिया तो वह लोमड़ी से बोली, "इस कुँए का पानी तो सच में मीठा है। चलो, अब हम यहाँ से बाहर निकलते हैं।" "अवश्य! ऐसा करो तुम अपने आगे के पैर कुँए की दीवार पर टिका कर खड़ी हो जाओ। मैं तुम्हारी पीठ पर चढ़कर कुँए से बाहर निकल जाऊँगी और फिर तुम्हें भी बाहर खींच लूँगी।" लोमड़ी ने कुटिलता से मुस्कुरा कर कहा। 

लोमड़ी की धूर्तता को बकरी समझ नहीं पाई। वह कुँए की पीवार पर आगे के पैरों के सहारे खड़ी हो गई। लोमड़ी बकरी की पीठ पर चढ़ी और कूदकर कुँए से बाहर निकल गई। बकरी बोली, "बहन! अब मुझे भी तो बाहर निकालो।" लोमड़ी ने हँसते हुए कहा, "तुम बाहर आकर क्या करोगी। वहीं कुँए में रहो और कुँए का ठंडा व मीठा पानी पिओ।" यह कहकर वह वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गई। बकरी बेचारी कुँए में ही बैठकर आँसू बहाती रही। 

उसे दुख हो रहा था कि उसने लोमड़ी का कहना क्यों माना। यदि कुँए में घुसने से पहले विवेक से काम लिया होता तो यों पछताना न पड़ता।

शिक्षा: किसी अपरिचित व्यक्ति का विश्वास कभी नहीं करना चाहिए।