धर्म-अध्यात्म-दान 
Dharam-Adhyata-Daan



जिससे अभ्युदय और कल्याण अथवा परमार्थ की सिद्धि हो, वही धर्म है।
अज्ञात

वेग से चलती हुई नौका में बैठे व्यक्ति को जिस प्रकार तटवर्ती वृक्ष विपरीत दिशा में भागते प्रतीत होते हैं, उसी प्रकार पुनर्जन्म की अवस्था का संबंध आत्मा के साथ मान लिया जाता है।
आदि शंकराचार्य

सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ है।
शंकराचार्य


जो स्वयं नहीं भोग सकता, वह प्रसन्न मन से दान भी नहीं कर सकता।
रवींद्रनाथ ठाकुर

प्रार्थना का अर्थ अमुक शब्दों का दोहराना नहीं है। प्रार्थना का अर्थ है। दैविकता की अनुभूति और प्राप्ति।
स्वामी रामतीर्थ

जो बिना प्रार्थना किए सोता है हर दिवस को दो रजनी बनाता है।
हर्बर्ट

प्रार्थना है एक देखने वाली और उल्लास में मस्त रहने वाली आत्मा का आत्मनिवेदन ।
इमर्सन

हमें अपनी प्रार्थनाओं से सामान्य मंगलकामना करनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर भलीभांति जानता है कि हमारी किस में भलाई है?
सुकरात

दान से बड़ा धर्म और नहीं। सबसे नीच मनुष्य वह है, जिसके हाथ लेने के फैल जाते हैं। और सर्वोच्च व्यक्ति वह, जिसके हाथ देने को बढ़ जाते
स्वामी विवेकानंद

अपने मन को स्थिर और एकाग्र करने के लिए मूर्तिपूजा करो।
साई बाबा