धर्म-अध्यात्म-दान
Dharam-Adhyata-Daan
जो मन तेज है, वह बीमार है। जो मन धीमा है, वह स्वस्थ है। जो मन स्थिर है, वह दिव्य है।
मेहर बाबा
किसी भी कर्म को पाप नहीं कहा जा सकता, वह अपने में पूर्ण है, पवित्र है। युद्ध में हत्या करना धर्म है, परंतु दूसरे स्थल पर अधर्म।
जयशंकर प्रसाद
जिस प्रकार कोई व्यक्ति पेड़ पर चढ़ते समय स्वतंत्र होता है, किंतु गिरते समय शक्तिहीन हो जाता है, इसी प्रकार कर्मों के संचयन के समय आत्मा स्वतंत्र होती है, किंतु जब कर्म पक जाते हैं, तो वह असहाय बन जाती
भगवान महावीर
जिसके पास धीरज है, जो मेहनत से नहीं घबराता, कामयाबी उसकी चेरी
अज्ञात
धर्म आत्मा का विषय है, जिसका प्रचार चिंतन, ज्ञान, तपस्या और अनुभव से ही होती है।
विनोबा भावे
नास्तिक वह है जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं।
स्वामी विवेकानंद
जो मनुष्य निरंतर प्रभु का भय मानता रहता है, वह धन्य है; परंतु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है।
ईसा मसीह
शब्द जितने कम होंगे, प्रार्थना उतनी ही अच्छी होगी।
लूथर
दान का भाव बड़ा उत्तम भाव है, पर इसका भाव यह नहीं कि समाज में दानपात्रों का एक वर्ग उत्पन्न किया जाए।
सम्पूर्णानन्द
आगचिंतन और आत्मशोधन की साधना ही आत्मा को परमात्मा का प्रदान करती है।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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