धर्म-अध्यात्म-दान
Dharam-Adhyata-Daan
अपने लिए इस पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो, जहां कीड़े और काई बिगाड़ते हैं और जहां चोर सेंध लगाते हैं और चुराते हैं, परंतु अपने लिए स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, क्योंकि जहां तुम्हारा धन होगा, वहां तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।
ईसा मसीह
कुछ मत मांगो। बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हें जो देना है, दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आएगापर अभी उसकी बात मत सोचो। वह वर्द्धित होकर, सहस्रगुणा वर्द्धित होकर वापस आएगा, पर ध्यान उधर नहीं जाना चाहिए। तुममें केवल देने की शक्ति है। दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है।
स्वामी विवेकानंद
समान परिस्थितियों में जब दूसरे लोग संघर्षा की मार से दब जाते हैं, तब ईश्वर पर भरोसा करने वाले विजय प्राप्त करते हैं।
स्वेट मार्डन
सिदियां प्राप्त करके लोग दुनिया में भ्रम फैलाते हैं कि वे दुनिया का उदार कर देंगे, किंतु यह कार्य ईश्वर का है, उसे हीं करने दो। ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं। ये सिद्धियां अज्ञान के कारण हैं, अतः झूठी हैं। ये यहां की उपज हैं।
महर्षि रमण
मोक्ष न योग से सिद्ध होता है और न सांख्य से, न कर्मों से और न विद्या से। वह केवल ब्रह्म और आत्मा की एकता के ज्ञान से ही होता है। और किसी प्रकार नहीं।
शंकराचार्य
भीतर आत्मा का प्रकाश फैला रहे तो बाहर से अनुशासन लादना आवश्यक नहीं।
अज्ञात
आत्मिक विकास का पौधा सांसारिक विषयवासना की पृथ्वी पर नहीं उगता। उसके लिए यलपूर्वक तैयार की हुई, प्रेम से तर समतल भूमि चाहिए।
स्वामी रामतीर्थ
जो दिखाई देता है वह तो उपयोगी है ही, जो नहीं दिखाई देता वह महान् उपयोगी है। वही धुरी है जिस पर जीवनचक्र घूमता है।
लाओसे
हमारा यदि कुछ छिन जाए तो दुःख प्रकट करते हैं, किंतु जो मिला है। उसके लिए धन्यवाद नहीं देते परमात्मा को। जो छिना, वह भी स्वयं का नहीं था। चोरी का ही था!
आचार्य रजनीश
सच्चाई यह है कि आदमी ने ईश्वर को अपनी शक्ल का बनाया, इस इतने ईश्वर हैं। ईश्वर ने हमें गढ़ा नहीं, लेकिन हम ईश्वर को रोज गट रहे हैं, इसलिए सबके भिन्न भिन्न ईश्वर हैं।
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