धर्म-अध्यात्म-दान 
Dharam-Adhyata-Daan



जिसे स्वर्ग की ऊंचाई छूनी हो, उसे नरक की गहराई भी छूनी पड़ती है। साधारण आदमी धर्म की ऊंचाई नहीं छू पाते, पापी छू लेते हैं। अति पर ही परिवर्तन होता है।

नीत्से


पोडेत और संत में वही भेद है जो बुद्धि और हृदय में है। अनुभूति का एक कण मनोज्ञान से कहीं अधिक मूल्यवान है। धर्म अनुभूति की वस्तु है।

रामधारी सिंह दिनकर



घर्म और व्यापार को एक तराजू में तौलना मर्खता है। धर्म, धर्म है: व्यापार, व्यापार। परस्पर कोई संबंध नहीं। संसार में जीवित रहने के लिए किसी व्यापार की जरूरत है, धर्म की नहीं। धर्म तो व्यापार का श्रृंगार है।

प्रेमचंद


अध्यात्म का अर्थ है, अपने को सही करना।

अज्ञात


जीवन के आध्यात्मिक ध्येय को जीवन के भीतर ही ढूंढ़ना चाहिए, बाहर नीं।

अज्ञात


प्रेम और विश्वास के साथ राम का नाम जपने से मानव जाति का कल्याण सेता है।

तुलसीदास


ईश्वर किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं देते हैं।

बाइबिल


आदमी धर्म के लिए लड़ेगा, उसके लिए सब कुछ करेगा, लेकिन वह धर्म के अनुरूप आचरण नहीं करेगा।

जवाहरलाल नेहरू


खुदा कहते हैं कि तुम दान दो, मैं तुम्हें और अधिक दूंगा।

हजरत मोहम्मद


हम इतने धार्मिक हैं कि एकदूसरे से नफरत कर सकें, लेकिन इतने धार्मिक नहीं है कि एकदूसरे से प्रेम कर सकें।

जोनयन स्विफ्ट