होली 
Holi



500 Words

रंगों का त्योहार होली वसंत ऋतु का संदेशवाहक है। इसके आगमन पर प्राणीमात्रा तो क्या, प्रकृति भी इठला उठती है। चहुँ ओर प्रकृति के रूप-सौंदर्य का बखान होने लग जाता है। 

पुष्पों पर भँवरों की मधुर गूंज से मन की कली खिल उठती है। आम्र वृक्ष पर बैठी कोयल की स्वर लहरी से हृदय की तंत्री बज उठती है। इस प्रकार वसंतराज के स्वागत पर प्रकृति खिल उठती है। 

चारों ओर हर्ष और उल्लास छा जाता है। भारतीय किसान के सामने उसका वर्ष भर का परिश्रम होता है। वह अपनी पकी फसल को देखकर फूला नहीं समाता है। उसका मन-मयूर नृत्य कर उठता है। वह मिलकर नाचता गाता है। प्राचीन काल में इस शुभावसर पर यज्ञ में कच्चे धान की आहुति डालकर उसको खाना शुरू करते थे। आजकल का होलिका दहन उसी प्रथा का विकृत रूप है। 

ऐतिहासिक दृष्टि से इस उल्लासमय त्योहार का संबंध दैत्यराज हिरण्यकश्यपु के पुत्र प्रहलाद और बहन होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है। युवराज प्रहलाद ईश्वर-भक्त था और हिरण्यकश्यपु नास्तिक। यही अंतर पिता-पुत्रा के वैमनस्य का कारण बना। दैत्यराज हिरण्यकश्यपु ने ईश्वर-भक्त पत्र प्रहलाद को अनेक प्रकार की यातनाएँ दीं। किन्तु ईश्वर–भक्त प्रहलाद अपने पथ से विचलित नहीं हुआ। 

अंत में बहन होलिका के विवश करने पर, दैत्यराज हिरण्यकश्यपु ने पुत्र प्रहलाद को होलिका के साथ अग्नि में बैठने को कहा। आदेश का पालन हुआ। होलिका अग्नि में न जलने के वरदान के कारण खुश थी। वह प्रहलाद को गोदी में लेकर बैठ गई। 

ईश्वर की कृपा से फल विपरीत निकला। प्रहलाद का अग्नि ने बाल भी बाँका नहीं किया और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस प्रकार होली अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है। 

यह रागरंग का त्योहार फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा के दिन आता है। इस शुभ अवसर पर मौहल्ले वाले घरों से लकडियाँ और पैसे इकटठे करके चौक पर होली तैयार करते हैं। संध्या समय महिलाएँ और बच्चे इसकी पूजा करते हैं। रात्रि को पंडित जी के बताए समयानुसार होली दहन कर दिया जाता है। होली दहन के समय लोग चने के बूट और गेहूँ की बालों को भूनकर खाते हैं। दूसरे दिन होली की अग्नि शांत हो जाती है। 

होली का अगला दिन दुल्हेंडी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन दोपहर के दो बजे तक रंग-गुलाल खेला जाता है। इस रंग-गुलाल में बच्चे, युवा और वृद्ध सभी भाग लेते हैं। एक-दूसरे पर रंग डालते हैं, गुलाल मलते हैं और गले मिलते हैं। 

मुहल्लों और सड़कों पर अनेक टोलियाँ गाती-नाचती. गुलाल मलती और रंग फेकती दिखलाई पड़ती हैं। फाग की समाप्ति पर सब लोग रगड़-रगड़कर नहाते हैं। नए-नए वस्त्र पहनकर मेला देखने के लिए जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में हास्य रस के कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। ब्रज प्रदेश की होली तो विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 

वर्तमान युग में, इस उल्लासमय त्योहार में भी कुछ दोष घर कर गए हैं। रंग खेलते हुए, पक्के रंगों का नए वस्त्रों पर डालना, बदबूदार कालिख व कीचड़ मुख पर मल देना, गंदगी राहगीरों पर फेकना, बसों व कारों पर गुब्बारे फेकना अथवा असंगत व्यवहार करना आदि कोई भी सभ्य व्यक्ति सहन नहीं कर सकता है।

इसी कारण संघर्ष छिड़ जाता है। कछ लोग भाँग व मदिरा पीकर अश्लील हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं। ये सब दोष इस त्योहार की पवित्रता को नष्ट कर देते हैं। 

राग-रंग का त्योहार होली मनोमालिन्य मिटाकर खुशी बिखेरने का त्योहार है। अतः इसे हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। भाँग, यूतक्रीड़ा और मदिरा को तिलांजलि देनी चाहिए, तभी हम इसकी पवित्रता को स्थिर रख सकते हैं।