ओणम 
Onam 



भारत पर्वो एवं लोक संस्कृतियों का अद्भुत प्रदेश है। कश्मीर से कन्याकुमारी यानि भारत के उतरी छोर से दक्षिणी किनारे तक यदि हम सफर करें तो हर दिन हर जगह एक नये पर्व से हमारा सहज ही साक्षात्कार होगा। हर पर्व अपने आप में निराला, अद्भुत एवं मनोहरी लगेगा। कहीं बैसाखी कही होली, कही दशहरा तो कहीं दिवाली। कोई भी पर्व देखें-एक अजीब सी अनुभूति होती है। हर पर्व में एक अनोखी संस्कृति एक नया आदर्श एक अपनापन और एक अजीब सी माटी की गंध। यही अनोखापन हमारे देश की महानता है, हमारी अनमोल धरोहर है और हमारी सेहत का राज भी। 


ऐसे ही पर्वो की श्रृंखला में एक नाम आता है ओणम। यूँ तो यह पर्व केवल की जमीन से जुड़ा है लेकिन इसके साथ जो कहानी जुड़ी है वह हमारी संस्कृति का अभिन्न अध्याय है। यह कहानी सनातन धर्म का ही हिस्सा है। लोकमत के अनुसार जो पौराणिक कथा ओणम के साथ जुड़ी उसका नायक केरल प्रदेश पर राज्य करने वाला महान् राजा महाबलि था। कहा जाता है कि महाबलि महाप्रतापी आदर्श धर्मपरायण, प्रजावत्सल एवं सत्पुरूष थे। उनके राज्य में सुख समृद्धि की बहुलता थी। वें महादानी थे। उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि वे राजा नहीं भगवान बन गए अपनी प्रजा के लिए। 


राज्य में हर जगह उनकी पूजा होने लगी। देवता भला इसे कैसे सह पाते। देवराज इन्द्र ने षड्यन्त्र किया। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता माँगी। विष्णु वामन का वेष बनाकर महाबलि की धरती पर उतरे। पहले तो उन्होंने महाबलि को बचनबद्ध कर लिया फिर उससे तीन पग जमीन माँगी। महादानी महाबलि के लिए तो यह साधारण सी बात थी। परन्तु जैसे ही राजा ने इसकी हामी भरी विष्णु ने अपना विराट रूप ले लिया। एक पग में उन्होंने सारी धरती नाप ली और दूसरे में आकाश, तीसरे पग के लिए कुछ बचा ही नहीं। 


महाबलि ने तुरंत ही अपना शरीर अर्पित कर दिया। अपना सब कुछ दान करने के बाद अब धरती पर वह रह भी नही सकता था। अतः विष्णु ने उसे पताल लोक में जाने की आज्ञा दी। जाने से पहले विष्णु ने उसे एक बरदान माँगने को कहा। महाबलि को अपनी प्रजा से आगाध प्रेम था। 


अतः उसने वर्ष में एक बार धरती पर आकर अपनी प्रजा को देखने की इच्छा प्रकट की। विष्णु ने इसे मान लिया। कहा जाता कि हर वर्ष श्रावण महीने के श्रवण नक्षत्र में राजा महाबलि अपनी प्रजा को देखने आते है। चूँकि मलयालम भाषा में श्रवण नक्षत्र को ओणम कहा जाता है इसीलिए इस पर्व का नाम भी ओणम ही पड़ गया। 


ओणम के अवसर पर सम्पूर्ण प्रदेश की जनता अपने देवतुल्य राजा की प्रतिक्षा में अपने घरों को सजाती है। चारों ओर खुशी का वातावरण फैल जाता है। दीप जलाये जाते है, वंदनवार लगाए जाते है। हर तरह धरती को सजाया जाता है। 


रंगोली द्वारा धरती का भव्य श्रृंगार किया जाता है। रंगोली से सजी धरती पर भगवान विष्णु और राजा महाबलि की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। दोनो को ही भव्य पूजा की जाती है। सभी नये परिधानों में सजकर तरह तरह के सांस्कृति कार्यक्रम प्रस्तुत करते है। मंदिरों में भव्य उत्सव मनाये जाते है। 


मनोरंजन के कार्यक्रमों जैसे नौका दौड़ हाथियों के जुलूस का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों के पीछे लोगों का उद्देश्य होता है कि उनके पूज्य राजा अपनी प्रजा को सखी देखकर प्रसन्न हो। इस दिन सभी लोग जी खोलकर दान भी करते है जो महाबलि की दानशीलता का प्रतीक है। 


इस अवसर पर कई तरह के नृत्य प्रस्तुति की भी परम्परा है। कत्थली जो केरल का सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य है, का आयोजन काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है। ये सारे कार्यक्रम व्यापक रूप से किये जाते है। इसमें सभी लोग हिस्सा लेते है। 


ओणम सुख समृद्धि, प्रेम सौहार्द एवं परस्पर प्रेम एवं सहयोग का संदेश लेकर आता है। इसके पीछे चाहे कोई भी कहानी जुड़ी हो, इतना तो स्पष्ट है कि यह हमारी संस्कृति का आईना है। 


हमारी भव्य विरासत का प्रतीक है। हमारे जीवन की ताजगी है। हमें साल में एक बार ही सही एक तेजी ताजगी दे जाता है जो हमारी धमनियों में वर्षभर नयेपनप का संचार करता रहता है।