पोंगल 
Pongal



भारत पर्वो का देश है। हम मौसम हर अवसर हर दिन हर वर्ग और प्रदेश के लिए कुछ न कुछ विशेष है। कुछ पर्व तो ऐसी हे जो राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाते है, पर कुछ ऐसी भी है जिन्हें प्रादेशिक स्तर पर मनाया जाता है। 


इन प्रादेशिक पर्वो के साथ उस विशेष प्रदेश कुछ मान्यताएँ जुड़ी होती है वहाँ की स्थानीय संस्क्रति का सामंजस्य होता है। प्रदेश चाहे जो भी हो पर्व चाहे जैसा भी हो इतना तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है पर्वो का हमारे सामान्य जीवन में एक विशेष महत्व है।


ये हमारे जीवन की सही तस्वीर प्रस्तुत करते है। हमारे आदर्शो, संस्क्रतियों संस्कारों परम्पराओं को जीवित रखने में अहम् भूमिका निभाते है। ये हमें हमारे अतीत से हमारे आदर्शो से और हमारी विरासतों से जोटे रखते है। हम कह सकते है कि ये पर्व हमारे प्राण है जो हमें हमारी जिन्दगी का अहसास दिलाते रहते है।


इन्ही पर्वो की पंक्ति में एक नाम पोंगल का भी आता है। यूँ तो यह तमिलनाडु प्रदेश का प्रमुख पर्व है परन्तु सही अर्थ में यह हमारे देश की सही तस्वीर पेश करता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और पोंगल मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र से ही जुड़ा है। 


तमिलनाडु प्रदेश में सर्दियों में भी बारिश होती है। यह बारिश धान की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक सिद्ध होती है। चूंकि वर्षा के देवता इन्द्रदेव माने जाते है इसलिए इस पर्व में इन्द्रदेव की पूजा की जाती है। 


इस पर्व का समय प्रायः जनवरी महीने का होता है। धान की फसल दिसम्बर के अन्त या जनवरी के प्रारम्भ तक तैयार हो जाती है फिर उसकी कटाई होती है। इसके बाद किसान मानसिक रूप से काफी उत्साहित रहते है। इसी स्वतंत्र एवं प्रसन्नता भरे दिनों में अपनी भावनाओं का भरपूर लाभ उठाने के लिए वे पोंगल का त्योहार मनाते है। 


यह पर्व कई चरणों में मनाया जाता है। पर्व का पहला दिन भोंगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन चावल का दलिया हर घर में पकाया जाता है। अपने सगे संबंधियों एवं मित्रों को आमन्त्रित किया जाता है। यह भोजन इन्द्रदेव के सम्मान में आयोजित किया जाता है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि इन्द्र की कृपा से ही अच्छी बारिश होती है जो धान की फसल को जीवन प्रदान करती है। 


अतः इस भोज द्वारा इन्द्र का धन्यवाद किया जाता है। चावल को प्रसाद के रूप में चढाया जाता है। इस दिन चावल खाना शुभ माना जाता है। इसलिए लोग चावल के भिन्न भिन्न पकवान बनाते है खाते और खिलाते है। 


पर्व के दूसरे चरण में दूसरे दिन सूर्य देवता का सम्मान किया जाता है। इस दिन उबले हुए चावल सूर्य देव को अर्पित किये जाते है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि धान की फसल को उगाने में सूर्य देव की अहम् भूमिका होती है। अतः महिलायें सूर्य देव की कई आकतियाँ बनाती है तथा उनका पूजन करती हैं।


तीसरे चरण को मतू पोंगल कहा जाता है। इस दिन वहाँ के लोग गाय की पूजा करते है। कृषि कार्य में गाय की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। इस दिन गाय को स्नान कराया जाता है, उनके माथे को सिन्दूर से रंगा जाता है तथा फूलों के हार इनके गलें में डाले जाते है। गाय को भी तरह तरह के पकवान खिलाये जाते है।


रात में लोग स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करते है तथा सगे-संबंधियों को भोज पर आमंत्रित करते है। काफी पवित्रता से सब कुछ सम्पन्न किया जाता है। एक साथ ही देवता एवं पशु-दोनों के महत्व को उजागर किया जाता है। पोंगल काफी धुम-धाम से मनाया जाता है। लोग काफी निष्ठा एवं उत्साह से सब कुछ सम्पन्न करते है। श्रद्धा एवं भक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है। पशुओं के प्रति उनका प्रेम भी सराहनीय


यह पर्व एक नई शक्ति का संचार करता है। प्रेम, सौहार्द, आदर्श एवं एक महान् परम्परा की सही तस्वीर देखने को मिलती है। पोंगल हमारी धरती की सुगंध है, परम्परा की पहचान है और हमारे आदर्शों का आईना है