परिश्रम
Parishram
केवल वही व्यक्ति बेकार नहीं है जो बैठा रहता है, बल्कि वह भी बेकार माना जाएगा जिसकी योग्यता का पूर्ण लाभ नहीं लिया जाता।
सुकरात
ईश्वर उसी के निर्वाह की चिंता करता है जो अपनी शक्तिभर पूरा श्रम करता है और श्रम करने में प्रतिष्ठा समझता है।
कृणदत्त
समुद्र में एक बार डुबकी लगाने से अगर रत्न न पाओ तो समुद्र को रलहीन मत कहो।।
रामकृष्ण परमहंस
अपने कुकर्मों का फल चखने में कड़वा परंतु परिणाम में मधुर होता है।
जयशंकर प्रसाद
तुम निरंतर कर्म करते रहो, किंतु कर्म में आसक्ति का त्याग कर दोयही ‘कर्मयोग' है।
स्वामी विवेकानंद
संसार में ऐसा कोई पहाड़, आकाश, समुद्र, स्वर्ग आदि नहीं हैं जहां पर किए हुए कर्मों का फल न मिलता हो।
योगबासिष्ठ
कर्मयोग के अनुसार बिना फल उत्पन्न किए कोई भी कर्म नष्ट नहीं हो सकता। प्रकृति की कोई भी शक्ति उसे फल उत्पन्न करने से नहीं रोक सकती।
स्वामी विवेकानंद
अपने ही प्रयत्न के सिवा कभी और कोई हमको सिद्धि देने वाला नहीं है, इसलिए कुछ प्राप्त करना चाहते हो तो उसके लिए प्रयत्न करो।
योगबासिष्ठ
कर्म, ज्ञान और शक्ति इन तीनों का जिस जगह सेवन होता है, वही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है।
महर्षि अरविंद
परमात्मा सब प्राणियों को रोटीपानी देता है, परंतु इनको उनके घरों में नहीं फेंकता है।
अज्ञात
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