हिंदी निबंध - फिल्मों में हिंसा 
Filmo Me Hinsa


आजकल जितनी भी फिल्में आ रही हैं उनमें हिंसा के दृश्य ज्यादा दिखाए जाते हैं। बिना हिंसात्मक दृश्य दिखाए तो फिल्म बनती ही नहीं हैं। इन हिंसात्मक दृश्यों का सबसे अधिक बुरा प्रभाव युवा मन पर पड़ता है। वे फिल्मों से मारधाड़ के दृश्य सीख कर अपने जीवन में उतारते दिखाई देते हैं। अपराधियों का इतिहास खगालने पर अधिकांश अपराधियों ने यह दावा किया है कि उन्होंने, मारधाड़ की तकनीक अमुक फिल्म से सीखी। वस्तुत: फ़िल्म मनोरंजन प्रधान होती है पर आजकल अधिकांश फ़िल्म हिंसाप्रधान आने लगी हैं। इन हिंसात्मक दृश्यों की रचना-प्रक्रिया कई बार आतंकवादियों को भी प्रशिक्षित करती हैं। पकड़े आतंकवादियों ने गहन सीबीआई जाँच के दौरान इस रहस्य को स्वीकार किया है। बड़े परदे पर ही नहीं छोटे परदे पर भी इसी तरह के धारावहिक बनने लगे हैं। फिल्म निर्माताओं और फिल्म निर्देशकों को टी.आर.पी. की परवाह किए बगैर ऐसी फिल्में समाज को देनी चाहिए जिनमें आवश्यक और सीमित मात्रा में हिंसा हो। और ऐसी तकनीकों से अपनी फिल्मों को दूर रखना चाहिए जो अपराधियों को शिक्षित करने का काम करे। अच्छी फिल्में समाज का दर्पण है और यह काम निर्देशक और निर्माता अपनी स्वार्थभावना से दूर रखकर कर सकते हैं। जितनी कम हिसा होगी उतनी ही फिल्म प्रभावी होगी।