हिंदी निबंध "जातीयता का विष"
Hindi Essay - Jatiyata ka Vish 


कभी मनुस्मृति में मानव को चार वर्षों में विभाजित किया गया था। ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र। यह स्थिति तब की परिस्थितियों के अनुसार ठीक होगी पर आज पढ़ा-लिखा वर्ग भी इसी स्थिति को जीवित रखे हुए हैं। इस कारण दलित वर्ग को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया गया है कि जाति, धर्म, लिंग, रंग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन जातिवाद का उन्मूलन भारत में अब तक नहीं हुआ है। आज भी बहुत-से व्यक्ति अपनी जाति का व्यक्ति मिलने पर खुशी से उछल पड़ते हैं और उसका काम नियमों से बाहर होकर करते हैं। जातिवाद का ताजा उदाहरण हरियाणा में जाट आरक्षण के नाम पर जबरदस्त हिसा की। ऐसा भी आरोप है कि उन्होंने अपनी जाति के लोगों को छोडकर बाकी जाती के लोगों को संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया। चुनाव में भी राजनेता जाति के नाम पर वोटों का केन्द्रीकरण से सने गार है। अगर दलित जाति का व्यक्ति मिल जाए तो उसके साथ बदसलूकी करने में भी गरेज नहीं करते. जाति के लोग भारत अखण्ड है। इसको एकता अनुपम है पर जाति के जहर से इस एकता को खडित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह भारत को प्रगति में बड़ी बाधा है। जरूरत है जातिगत भेदभाव जड़ से उखाड़ने की है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो भारत की प्रगति को ग्रहण लग जाएगा।