हिंदी निबंध - महंगाई और बढ़ती कीमतें 
Mehangai Aur Badhti Kimate 


नई दिल्ली। इन दिनों तो हद हो गई। महंगाई सातवें आसमान पर चढ़कर इतरा रही है। कभी पचास-साठ रुपए किलो बढ़िया दाल मिल जाया करती थी, आज दो सौ रुपए किलो मिल रही है। ऐसे में देश से दालें मध्यमवर्ग के लोगों की रसोई से गायब हो गई हैं। यही हाल सब्जियों का है। कुछ गर्मियों में सब्जियाँ ऐसी होती थीं जो सस्ती हो जाया करती थीं जैसे तोरी, टिंडा घिया आदि। इनका भी बुरा हाल है। ये भी मध्यवर्गीय परिवारों की रसोई में नहीं बन पा रही हैं। जब मध्यवर्गीय परिवारों से ये जिंस दूर हो गई हैं तो गरीब परिवार तो इसे केवल बाजार में देखभर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि मँहगाई ने रसोई पर ही प्रहार किया है। आवाजाही के साधन भी महँगे हो गए हैं। बसों, रेलों और ऑटो रिक्शा के किराए बढ़ गए हैं। कपड़ा इतना महँगा है कि छोटे बच्चे की फरॉक भी दो-ढाई सौ रुपए से कम नहीं आती। वर्तमान सरकार से बहुत उम्मीद थी कि यह महँगाई को कम कर आम आदमी को चिंताओं से निजात दिलाएगी पर ऐसा कुछ नहीं हो पाया। उलटे महँगाई बढ़ गई है। देखते हैं कि सरकार को हम पर कब रहम आता है!