हिंदी निबंध - महंगाई के बोझ तले मजदूर 
Mehangai ke Bojh Tale Majdoor


कहा जाता है कि महंगाई अमीरों का कुछ नहीं बिगाड़ती। ये हर तरह की महँगाई में जीना जानते हैं क्योंकि पूरी तरह संपन्न होते हैं। अरहर की दाल चाहे 200 रुपए किलो क्यों न बिके. उन पर कोई असर नहीं पड़ता। मकान का किराया चाहे दस हजार रुपए महीने क्यों न हो जाए. दे देंगे. पर महँगाई जब बढ़ती है तो यह मजदूरों को निशाना बनाती है। इसलिए महंगाई की मार यही वर्ग सबसे ज्यादा झेलता है। आज मजदूर की दैनिक दिहाड़ी तीन सौ से चार सौ रुपए प्रतिदिन है। उसे पूरे महीने में मुश्किल से दस-बारह दिन काम मिल पाता है। छह-सात हजार रुपए महीने में वे अपने परिवार का संचालन कैसे कर सकता है जब पाँच हजार रुपए महीना उसे केवल किराए के मकान में रहने के लिए खर्च करने पड़ते हैं। वह कपड़े चाहे साल में दो-तीन बार सिलवाए, या एक बार ही सिलवाए। पर अपने बच्चे को तो उसे रोटी देनी ही होगी। आज गरीब से गरीब परिवार का रसोई का खर्च कम से कम पाँच हजार रुपए महीने है। और ऐसे मजदूरों का अभाव नहीं है जो इतना भी नहीं कमा पाते। सरकार की ओर से मजदूरों के भले के लिए प्रयास अवश्य होते हैं पर उनके हिस्सों को भी साधनसंपन्न डकार जाते हैं। न तो वे अपने बच्चों को शिक्षित कर पाते हैं और न ही अपना रहन-सहन ठीक कर पाते हैं। कुछ तो महंगाई के तले दब कर दम तोड़ जाते हैं। सरकार अगर आर्थिक कारणों को खत्म करने में कामयाब हो जाए और खास तौर से इन गरीब मजदूरों को रोजगार की गारंटी दे दे, अमीरों को इनका शोषण करने से रोक दे. तो मजदूर की हालत में कुछ सुधार आ सकता है। इसके अलावा सरकार अगर खाद्य जिन्सों की दर तय कर दे कि इससे अधिक कोई ले नहीं सकता और अगर लेता है तो कड़ी सजा का हकदार होगा तो इस भारी महँगाई में मजदूर ज़िदा रह सकते हैं।