हिंदी निबंध - शहरों का दमघोंटू वातावरण 
Shahro Me Damghotu Vatavaran


कभी गालिब ने एक शेर में कहा था कौन जाए गालिब दिल्ली की गलियाँ छोड़ के पर अब हालात यह है कि दिल्ली का वातावरण ऐसा हो गया है कि दम घुटने लगता है। लोग दिल्ली शहर छोड़ कर आसपास खुले इलाकों में जाकर रह रहे हैं। करीब-करीब यही हाल देश के महानगरों का होता जा रहा है। लोग यह सोचते हैं कि शहर में 24 घंटे बिजली होगी, चौड़ी-चौड़ी सड़कें होंगी, साफ नालियाँ और स्वच्छ पानी होगा। पर अब जनसंख्या बढ़ने के कारण शहर ऐसा नहीं रहा है। अब तो यहाँ ध्वनि प्रदूषण है, वायु प्रदूषण है, जल प्रदूषण है, भूमि प्रदूषण है। इतना प्रदूषण की आप साँस नहीं ले सकते। शाम को चाँदनी चौंक में खड़े हो जाएँ तो वहाँ आपका खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा। वाहनों से निकलता धुंए का असर वहाँ स्थित पेड़ों पर देख सकते हैं जिनकी पत्तियाँ काली पड़ गई हैं। इस दमघोंटू वातावरण में रहने के लिए भी आपको एक छोटे से फ्लेट के लिए तीस लाख रुपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं। दमघोंटू वातावरण का एक पहलू यह भी है कि यहाँ का व्यक्ति सुरक्षित नहीं है। रोजाना अपराध हो रहे हैं। चेन खींचना तो आम बात हो गई है। अपराधी खुले आम सड़कों पर घूम रहे हैं। बलात्कार तो आम बात हो गई है। सच तो यह है कि शहरों का वातावरण दम घोंटने वाला है। यह शारीरिक स्तर पर भी नुकसान पहुंचा रहा है और मानसिक स्तर पर भी।