हिंदी निबंध - वैदिक युग
Vaidik Yug
वैदिक युग भारत का प्रायः सबसे अधिक स्वाभाविक काल था। यही कारण है कि आज तक भारत का मन उस काल की ओर बार-बार लोभ से देखता है। वैदिक आर्य अपने युग को स्वर्णकाल कहते थे या नहीं, यह हम नहीं जानते, किन्तु उनका समय हमें स्वर्णकाल के समान अवश्य दिखाई देता है लेकिन जब बौद्ध युग का आरम्भ हुआ, वैदिक समाज की पोल खुलने लगी और चिंतकों के बीच उसकी आलोचना आरम्भ हो गई। बौद्ध यग अनेक दृष्टियों से आज के आधुनिक-आन्दोलन के समान था। ब्राह्मणों को श्रेष्ठता के विरुद्ध बुद्ध ने विद्रोह का प्रचार किया था, जाति-प्रथा के बुद्ध विरोधी और मनुष्य को वे जन्मना नहीं कर्मणा श्रेष्ठ या अधम मानते थे। नारियों को भिक्षुणी होने का अधिकार देकर उन्होंने यह बताया था कि मोक्ष केवल पुरुषों के निमित्त नहीं, है, उसकी अधिकारिणी नारियाँ भी हो सकती हैं। बुद्ध की यह सारी बातें भारत को याद आ रही हैं और बुद्ध के समय से बराबर इस देश में ऐसे लोग उत्पन्न होते रहे हैं, जो जाति-प्रथा के विरोधी थे, जो मनुष्य को जन्मना नहीं, कर्मणा श्रेष्ठ या अधम समझते थे। किन्तु बुद्ध में आधुनिकता से बेमेल बात यह थी कि वे निवृत्तिवादी थे, गृहस्थी के कर्म से वे भिक्षु धर्म को श्रेष्ठ समझते थे। उनकी प्रेरणा से देश के हजारों-लाखों युवक जो उत्पादन बढ़ाकर समाज का भरण-पोषण करने के लायक थे, संन्यासी हो गए। संन्यास की संस्था समाज विरोधिनी संस्था है।
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