आज्ञापालन
Agyapalan
मनुष्य को इस संसार में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सभी प्राणियों में उसे उच्चतम स्थान दिया गया है। यह स्थान उसे उसकी बुद्धिमत्ता तथा चारित्रिक गुणों के कारण मिला है। ईमानदारी, सच्चाई, अनुशासन, आत्मसम्मान आदि मनुष्य के प्रमुख चारित्रिक गुण हैं। इन्हीं गुणों में से एक गुण आज्ञाकारिता है। आज्ञाकारी स्वभाव मनुष्य के चरित्र को ही अच्छा नहीं बनाता बल्कि उसके सुनहरे भविष्य की कुंजी भी है। मनुष्य के जन्म के साथ ही इस गुण का विकास धीरे-धीरे मनुष्य के जीवन में होना चाहिये। बचपन से ही हमारे मातापिता हमें विभिन्न कार्य करने का आदेश देते हैं तथा विभिन्न कार्य करने से रोकते हैं। यदि कोई बच्चा इन आदेशों को मानता है, तो उस बालक का यही गुण आज्ञाकारिता कहलाता है। यदि कोई अपने से बड़ों के आदेशों को नहीं मानता तो यह उसके चरित्र का दोष होता है। ऐसे अवज्ञाकारी बालक को कोई पसन्द नहीं करता।
छात्र जीवन में तो आज्ञाकारी होना अत्यंत आवश्यक है। यदि कोई छात्र अपने भविष्य को उज्ज्वल तथा अपने जीवन को सफल बनाना चाहता है तो उसे अपने अध्यापकों तथा माता-पिता के आदेशों का अवश्य पालन करना चाहिये। यदि छात्र अध्यापक के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो वे असफल हो जायेंगे। जो छात्र आज्ञाकारी नहीं होता है, उसका कहीं सम्मान नहीं होता है। हर व्यक्ति उसे एक आवारा तथा अनशासनहीन छात्र के रूप में देखता है। आज्ञाकारिता एक ऐसा आभूषण है जो चरित्र को और सुन्दर बना देता है। यह गुण जानवरों तक में पाया जाता है। कुत्ता अपने मालिक के आदेशों का पालन करता है। हाथियों का झुण्ड अपने मुखिया हाथी के पीछे चलता है। आज्ञाकारिता के बिना जीवन कष्टमय हो जाता है। इस गुण के बिना तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कल्पना करके देखा जाये कि जब हमारे माता-पिता हमें छुरी या ब्लेड आदि का खेल करने से रोकते हैं तथा हम अपनी अज्ञानता के कारण उनकी आज्ञा नहीं मानते तो उसका फल यह होता है कि हमारा हाथ कट जाता है या शरीर में चोट लग जाती है। हम अपने जीवन में सफलता अपने बड़ों की आज्ञा मानकर ही प्राप्त कर सकते हैं। एक सभ्य तथा स्वस्थ समाज के लिये भी आज्ञाकारिता प्रमुख गुण है। आज्ञाकारिता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है।
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