डाकिया
Dakiya
वर्तमान समय में डाकिया समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। आजकल के कम्प्यूटर, मोबाइल तथा टैलेक्स के दौर में भी इसकी महत्ता कम नहीं हुई है। डाकिया हमें चिट्ठी, मनीआर्डर, रजिस्ट्री आदि पहुँचाता है। उसका कार्य मुश्किल तथा जिम्मेदारी वाला होता है।
एक डाकिया सदैव खाकी रंग की ड्रेस पहनता है। खाकी पैन्ट, खाकी शर्ट तथा सिर पर खाकी टोपी पहने डाकिया दोपहर के समय घरों पर पत्र बाँटता दिखाई दे जाता है।
सबसे पहले वह सुबह डाकखाने पहुँचता है तथा पत्रों और पार्सलों को इलाके के हिसाब से बाँटता है। फिर थैले में अपने क्षेत्र की चिट्ठियों को लेकर निकल जाता है। कहीं वह खुशियों के समाचार लाता है तो कहीं गम का सन्देश देता है। किसी छात्र का परीक्षाफल पहुँचाता है तो कहीं किसी बहन को उसके भाई द्वारा भेजा गया उपहार देता है। यानी जीवन के विभिन्न रंगों का चलता-फिरता नमूना है। वह अत्यंत परिश्रमी होता है। चाहे गर्मी हो या सर्दी, बारिश हो या ओले, उसे हर हाल में घर-घर जाकर चिट्ठियाँ बांटनी होती है। इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होने के बावजूद उसे बहुत कम वेतन मिलता है। उसका जीवन अत्यंत साधारण होता है, किन्तु डाकिया कभी अपने दुःखों की शिकायत नहीं करता है।
जिस प्रकार समाज में अध्यापकों तथा डॉक्टरों का सम्मान किया जाता है। उसी प्रकार डाकिये को भी आदर की दृष्टि से देखा जाता है। बहुत से लोग दीपावली, ईद किसमस आदि पर उसे बख्शीश आदि भी देते हैं। यद्यपि विज्ञान के इस युग में इनका महत्व कुछ घट गया है। लेकिन का आवश्यकता अब भी बनी है। बहुत से कार्य ऐसे हैं जिनको करने के लिये डाकिये की जरूरत अत्यधिक है।
इनकी दयनीय दशा दूर करने के लिये सरकार को ठोस कदम उठान चाहिये। ताकि ये समाज में रहकर अपने कार्य को और निष्ठा तथा ईमानदारी के साथ कर सकें।
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