एक रेलयात्रा का अनुभव
Ek Rail Yatra Ka Anubhav
कि प्रत्येक दिन की भागदौड़ भरी जिन्दगी मनुष्य के शरीर तथा मन दोनों को थका देती है। हर रोज एक मशीन की तरह एक ढर्रे पर कार्य करते-करते मनुष्य का मन ऊब जाता है। उसे नयी स्फूर्ति के लिये मनोरंजन तथा आराम की आवश्यकता होती है। किसी स्थान की यात्रा मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन है हो सकती। यात्रा आदि रेल की हो तो यात्रा का आनन्द और भी अधिक हो जाता है। यात्रा मनुष्य को नये-नये अनुभव प्रदान करती हैं। मुझे भी विभिन्न स्थानों की यात्रा करना अत्यंत अच्छा लगता हैं। पिछले वर्ष दिसंबर माह में सर्दियों के अवकाश में मैंने आगरा से बंगलौर तक की रेलयात्रा का आनन्द लिया। मैं आगरा कैन्ट रेलवे स्टेशन से स्वर्ण जयन्ती ट्रेन में सवार हआ। पहले तो रेलवे स्टेशन का दृश्य ही अत्यंत आकर्षक था। फल वाले मिठाई, खिलौने वाले, पकवान तथा चाय वाले तरह-तरह से आवाजें लगाकर अपना सामान बेच रहे थे। रेलगाड़ियों के आने जाने का ऐलान किया जो रहा था। प्लेटफार्म पर बड़ी भीड़ थी। पुलिस वाले सुरक्षा के लिये यात्रियों के सामान चेक कर रहे थे। प्लेटफार्म का दृश्य अत्यंत विहंगम पर्ण था। हर एक व्यक्ति अपने में ही मगन था। बहुत सी महिलायें बैठी स्वेटर बुन रही र्थी तथा बातें कर रही थीं। इतने में ऐलान हुआ कि स्वर्ण जयन्ती ट्रेन प्लेटफार्म एक पर आ रही है। प्लेटफार्म पर सभी लोग सतर्क हो गये। रेल के रुकने पर सभी उसमें सवार हो गये। मैं भी अपनी आरक्षित सीट पर जाकर बैठ गया। यात्रा आरम्भ हो गयी।
मेरी सीट के सामने दो वृद्ध बैठे बातें कर रहे थे। वे भारतीय राजनीति के गिरते स्तर पर चिंतित थे। वे नेताओं को भारत की दयनीय दशा का दोषी मानते थे। इस पर मैंने आज्ञा लेकर उनकी बातचीत में हिस्सा लिया। मैंने कहा कि जनता की अशिक्षा तथा अजागरूकता से ही ये नेतागण इतना भ्रष्टाचार करने में सफल हो पाते हैं। तभी पीछे की सीटों से शोर सनाई दिया। मैंने देखा दो लोग लड़ रहे हैं। वे दोनों सीट को लेकर लड़ रहे थे। दोनों एक ही सीट पर अपना आरक्षित टिकट दिखा रहे थे तथा अपनी सीट आरक्षित होने का दावा कर रहे थे। जब टी.टी. आया तथा उसने दोनों यात्रियों के टिकट देखे। उसने एक यात्री के टिकट को नकली बताया। जब उससे पूछा गया कि उसने यह टिकट कहां से खरीदा तो उसने बताया कि उसने यह टिकट एक दलाल से खरीदा था। इस घटना से हम सभी को यह सीख मिली कि रेलवे के काउंटर के अतिरिक्त हमें किसी अन्य जगह या व्यक्ति से टिकट नहीं लेने चाहिये। यह यात्रा लगभग 36 घंटे की थी। रेल पूरे भारत का भ्रमण कराती हुई घूम रही थी। जैसे ही ट्रेन भोपाल से आगे नागपुर की ओर बढ़ी, धीरे-धीरे आगरा में महसूस हो रही सर्दी खत्म हो गई तथा मौसम में गर्मी आने लगी। मैंने भारत की विशालता तथा सुन्दरता का अनुभव किया। भारत वास्तव में अपने आप में एक संसार है जहाँ एक साथ सारे मौसम होते देखे जा सकते हैं। सिकन्दराबाद के रेलवे स्टेशन पर मैंने दक्षिण भारत के प्रसिद्ध इडली, डोसा, उपमा आदि व्यंजनों का आनन्द लिया। यद्यपि यात्रा लंबी थी किन्तु अत्यंत रोमांचक थी। प्रात: 5 बजे मैं बंगलौर स्टेशन पर आ गया। यह यात्रा मेरे लिये एक सुन्दर तथा रोमांचक अनुभव कराने वाली थी। मैंने इसका भरपूर आनन्द लिया।
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