मदर टेरेसा
Mother Teresa
आज के वक्त में मदर टेरेसा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्हें दया, करुणा, प्रेम तथा सेवा की प्रतिमूर्ति कहा जाये तो कुछ अतिश्योक्ति नहीं होगी। वास्तव में वह एक सन्त थीं।
वह 1910 ई. में अल्बानिया नामक देश में पैदा हुई थी। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के बाद केवल अठारह साल की उम्र में ही वह नन बन गई तथा भौतिक सुख तथा मोहमाया से भरे जीवन को त्याग दिया। इसके बाद वह भारत आयीं तथा कोलकाता में सेण्ट मैरी हाईस्कूल में शिक्षिका बन गयीं। कोलकाता में झुग्गी-झोंपड़ी के गरीबों का द:खी तथा दयनीय जीवन देखकर उनको अत्यंत दु:ख हुआ। उन्होंने 1946 ई. में गरीबों की भलाई के लिये अपना जीवन समर्पित कर देने का निश्चय किया। उन्होंने सादगी के साथ जीते हुये, गरीबों की सेवा में दिन रात जी तोड़ मेहनत की। वह किसी बीमार की सेवा करने को नंगे पाँव ही दौड़ी चली जातीं। दया, शान्ति तथा प्रेम ही उनके जीवन के सिद्धान्त थे। धीरे-धीरे लोग भी उनके साथ जुड़ने लगे। उन्होंने कोलकाता में गरीबों तथा रोगियों के लिये एक आश्रम की स्थापना की। वहाँ बहुत से लोग रोगियों की देखभाल करते थे।
जो रोगी उनके सम्पर्क में आये, उनका कहना था कि उनकी आधी बीमारी तो मदर टेरेसा की मीठी मुस्कान तथा कोमल स्पर्श से ही चली जाती है। रोगियों की सेवा मदर इसी तरह वर्षों तक करती रहीं। भारत सरकार ने उनके इन कामों को देखते हुये उन्हें कई पुरस्कार प्रदान किये। उनकी प्रसिद्धि तथा रोगियों के प्रति उनके प्रेम तथा करुणा की बातें धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैल गयीं। इसी को देखकर 1979 ई. में मदर को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। हालाँकि अब मदर इस संसार को विदा कह चुकी हैं किन्तु उनके सिद्धान्त अब भी इस संसार में हैं। उनका आश्रम अब भी उसी लगन से रोगियों तथा गरीबों की सेवा कर रहा है। मदर टेरेसा की महानता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोमन कैथोलिक चर्च उन्हें सन्त की उपाधि दे चुका है। वास्तव में अपने सत्कर्मों से वह सदा के लिये अमर हो गई हैं।
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