आवाज कैसे पैदा होती है 
Awaz kaise paida hoti hai



समस्त जीवित वर्ग में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने मन के विचारों को आवाज द्वारा एक-दूसरे पर भली-भांति व्यक्त कर सकता है। वह भयानक आवाजें पैदा कर सकता है। धीरे-धीरे और जोर-जोर से बोल सकता है।

आवाज पैदा करने के लिए हमारे गले में एक खोखला अंग होता है जिसे ध्वनि बॉक्स कहते हैं। वास्तव में ध्वनि बॉक्स श्वास नलिका का एक उभरा हुआ भाग है। इसकी दीवारें कार्टीलेज की बनी होती हैं। कार्टीलेज बहुत ही मुलायम हड्डी जैसा होता है। इसी से हमारे बाहरी कान भी बने हैं। इस बॉक्स के अंदर म्यूकस झिल्ली होती है। इस बॉक्स के दोनों और दो वोकल कार्ड होते हैं। प्रत्येक कार्ड की गति 16 मांसपेशियों द्वारा नियंत्रित होती है। इन्हीं मांसपेशियों द्वारा वोकल कार्ड्स में ढीलापन या तनाव पैदा होता रहता है।

फेफड़ों से मुंह में आने वाली हवा जब वोकल कार्डों से गुजरती है तो ये कंपन करने लगते हैं। इन्हीं कपनों के परिणामस्वरूप आवाज पैदा होती है।

ध्वनि या तीखापन, भारीपन और सुरीलापन बोकल कार्डों के तनाव पर निर्भर करता है। मांसपेशियों द्वारा इनका तनाव नियंत्रित होता रहता है। जब इनमें अधिक तनाव होता है तो ये एक सेकंड में 1000 बार तक कंपन करती हैं, जिससे सुरीली आवाज पैदा होती है। इनमें कंपन जितना अधिक होगा उतनी ही आवाज पतली होगी और इनकी कंपन-गति जितनी कम होगी आवाज उतनी ही मोटी होगी। अलग-अलग आदमी की कंपन दर अलग-अलग होती है इसलिए उनके मुंह से निकलने वाली आवाजें भी अलग-अलग होती है इसलिए उनके मुंह से निकलने वाली आवाजें भी अलग-अलग होती हैं। जिन लोगों के स्वर संगीतमय होते हैं, उनका ध्वनि बॉक्स कुछ अच्छे ढंग से निर्मित होता है।

जब बच्चा 13-14 वर्ष का हो जाता है तो वोकल कॉर्ड कुछ मोटे हो जाते हैं जिससे उनकी कंपन दर कम हो जाती है और आवाज मोटी हो जाती है। इतना ही नहीं हमारी छाती, पेट, जीभ, होठ, दांत आदि का भी आवाज पैदा करने में योगदान होता है।