बर्फ कैसे गिरती है 
Baraf kaise girti hai 



सर्दी के मौसम में पहाड़ों और ठंडे क्षेत्रों में गिरने वाली बर्फ वास्तव में पानी की ही एक जमा हुआ रूप है। जब बर्फ गिरती है तो यह रूई के छोटे छोटे रेशों की तरह मुलायम और सफेद होती है। बर्फ के इन टुकड़ों की रचना मणिभीय होती है। ये षट्भुजाकर होते हैं। ये टुकड़े सूर्य के प्रकाश के सभी रंगों को परावर्तित कर देते हैं इसलिए इनका रंग सफेद दिखाई देता है।

गर्मी के कारण समुद्रों, नदियों, झीलों तालाबों आदि का पानी वाष्पित होता रहता है। यह जलवाष्प हवा से हल्की होती है और हल्केपन के कारण यह वायुमंडल में ऊपर उठती जाती है। यही वाष्प वायुमंडल में बादलों का रूप धारण कर लेती है। हम जानते हैं कि ऊंचाई के साथ-साथ वायुमंडल का तापमान भी काफी कम होता जाता है और कम तापमान वाले हिस्सों में अधिक जलवाष्प नहीं समा सकती। इस प्रकार वायुमंडल के ऊपरी क्षेत्रों में जलवाष्प की मात्रा उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है। इस स्थिति में वायुमंडल में उपस्थित धूल और धुएं के कणों पर जलवाष्प संघनित होकर ठंड के कारण बर्फ के कणों में बदल जाती है। ये कण एक दूसरे से चिपक कर बर्फ के मणिभों में बदल जाते हैं। जब इनका भार अधिक हो जाता है तो ये बर्फ के टुकड़ों के रूप में नीचे गिरने लगते हैं। यह बर्फ पहाड़ों की चोटियों पर जमा होती रहती है।

जब प्रश्न आता है कि बर्फ पहाड़ों पर क्यों गिरती है मैदानों में क्यों नहीं गिरती? किसी स्थान पर बर्फ का गिरना दो बातों पर निर्भर करता है। उस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई और भूमध्य रेखा से दूरी । जो स्थान समुद्र तल से जितना अधिक ऊंचा होगा और भूमध्य रेखा से जितना अधिक दूर होगा वहां बर्फ गिरने की संभावना भी अधिक होगी। वायुमंडल में जलवाष्प से बनने वाली बर्फ की मात्रा बहुत अधिक होती है, लेकिन इसका बहुत थोड़ा हिस्सा जमीन पर बर्फ के रूप में गिरता है और अधिक हिस्सा वर्षा के रूप में गिरता है। जिन क्षेत्रों का तापमान अधिक होता है उन स्थानों पर गिरने वाले बर्फ के कण वायुमंडल में ही पिघल कर वर्षा की बूंदों का रूप धारण कर लेते हैं लेकिन पहाड़ों के ऊपर तापमान कम होने के कारण बर्फ के गिरने वाले कण पिघल कर पानी में नहीं बदल पाते हैं बल्कि पहाड़ों के ऊपर बर्फ के रूप में ही जमा होते रहते हैं। यही बर्फ अपने दबाव के कारण सख्त होती जाती है।

बर्फ का गिरना हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। पहाडों पर जमी बर्फ के पिघलने से ही नदियों को गर्मियों में पानी मिलता है। यही पानी खेतों की सिंचाई के काम आता है। बर्फ के टुकड़ों के बीच में वायु होती है इसलिए यह ऊष्मा की कुचालक होती है। इसी कारण बर्फ धरती के ऊपर कंबल का काम करती है। इसी गुण के आधार पर लोग बर्फ की चट्टानों को खोदकर घर बना लेते हैं जिनमें ठंड बहुत कम लगती है। बर्फ के प्रभावों से बचने के लिए पहाड़ी इलाकों में मकान की छतें ढाल बनाई जाती हैं जिससे गिरने वाली बर्फ खिसक-खिसक कर जमीन पर आती रहती है। इससे मकानों के टूटने का डर नहीं रहता।