दूध में पानी की मिलावट का पता कैसे चलता है
Doodh mein pani ki milawat ka pata kaise chalta hai 



दूध में पानी की मिलावट का पता करने के लिए जिस यंत्र का प्रयोग करते हैं उसे लैक्टोमीटर कहते हैं। यह कांच से बना एक बेलनाकार बर्तन होता है। इसके एक सिरे को गोलाकार कर देते हैं और दूसरे सिरे को एक पतली नलिका के रूप में लंबा कर देते हैं। गोल हिस्से में थोड़ा सा पारा भर देते हैं ताकि यह आसानी से दूध में तैर सके। इसके बाद नली को बंद कर दिया जाता है। इस प्रकार बने यंत्र को अब शुद्ध दूध में तैराया जाता है इसकी नली जिस बिंदु तक दूध में डूबती है वहां चिह्न अंकित करके एम (M) लिख दिया जाता है। अब इसे पानी में डुबाया जाता है। पानी में यह कुछ अधिक डूबता है क्योंकि पानी दूध से हलका होता है। जिस स्थान तक यह पानी में डबती है वहां निशान लगाकर डब्ल्यू (W) लिख दिया जाता है। M और W के बीच में 3,2,1 अंक लिख दिए जाते हैं। इस प्रकार यह यंत्र दूध की शुद्धता पता करने के लिए तैयार हो जाता है।

दूध की शुद्धता की जांच करने के लिए इस यंत्र को दूध में तैराते हैं। यदि यह Mऔर W के बीच के किसी दूसरे चिहन तक डूबता है तो दूध में पानी की मिलावट है। यदि यह 3 वाले अंक तक डूबता है तो दूध 75% शुद्ध है। यदि यह 2 के निशान तक डूबता है तो दूध 50% शुद्ध है।

इस यंत्र से दूध की शुद्धता का काफी हद तक पता लग जाता है। लेकिन इसमें एक दोष भी है। यदि पानी मिलाए हुए दूध में इतना सपरेटा मिला दिया जाए कि उसका घनत्व (भारीपन) शुद्ध दूध के बराबर हा जाए तो यह यंत्र धोखा दे जाएगा। अर्थात् पानी और सपरेटा मिले हुए दूध में भी यह M चिह्न तक डूबेगा। इससे जांच करने वाला व्यक्ति यही निष्कर्ष निकालेगा कि दूध शुद्ध है। इस प्रकार सपरेटा मिले हुए दूध की परख यह यंत्र नहीं कर सकता।