हकलाने का क्या कारण है
Haklane ka kya karan hota hai
हकलाने की प्रवृत्ति अधिकतर लड़कों में पाई जाती है। हकलाने के भी अनेक कारण हो सकते हैं। रक्त तंत्रियों, दांत, जीभ या फिर किसी भी शारीरिक कारणों या फिर आत्मविश्वास की कमी के कारण या फिर मानसिक संतुलन के बिगड़ जाने के कारण हकलाहट आ सकती है। असल में हकलाने के कारणों का अभी तक कोई निश्चित उपाय संभव नहीं हो पाया है फिर भी कुछ कारणों का पता चल चुका है। कई बार तो यह विचार पूरे परिवार में छूत की बीमारी तरह फैल जाता है और थोड़ा बहुत हकलाना पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता ही रहता है।
मस्तिष्क का वह भाग जिससे आदमी के बोलने की शक्ति संचालित होती है, उसे किसी नापसंद के काम को करने के लिए बाध्य किया जाता है जो ऐसा लगता है जैसे बातचीत करने के जो स्नायुविक संस्थान है उनमें गड़बड़ी पैदा हो जाती है। आदमी पर उनकी भावनात्मक स्थिति का प्रभाव हकलाने या तुतलाने पर काफी हद तक पड़ता है। विशेष तौर पर बच्चों में देखा गया है कि हकलाने की प्रवृत्ति उन बच्चों में अधिक पाई जाती है जो मानसिक पीड़ा से ग्रस्त होते हैं। हीनभावना से ग्रस्त आदमी जब कोई बात उत्तेजना से कहता है या फिर किसी बात को जोर देकर कहता तो उसमें हकलाने की प्रवृत्ति आ जाती है। यह कोई बीमारी नहीं है। कुछ ऐसे ही उदाहरण सामने भी आए हैं।
एक बच्चे की मां ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया तो ईर्ष्यावश पहला बच्चा बैचेन हो उठा वह सोचने लगा कि शायद मेरा अधिकार छीनने वाला एक और बच्चा आ गया। उसी दिन से पहला बच्चा तनाव ग्रस्त हो उठा। उसमें चिड़चिड़ापन भी आ गया। अब वह कुछ हकलाने भी लगा। वह एकांत में बैठा घंटों सोचता रहता। अब उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। बच्चे के स्वभाव में अचानक परिवर्तन देख अभिभावक घबरा उठे क्योंकि वे अभिभावक तो पहले बच्चे से बहुत प्यार करते थे।
अक्सर जिन बच्चों में, पुरुषों में आत्मविश्वास की कमी होती है या फिर जो लोग मानसिक रूप से कमजोर होते हैं वे किसी के सामने अपनी बात कहने में हिचकिचाते हैं उनमें भी हकलाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। हमेशा तिरस्कार पाने वाला या फिर जिसकी हर समय अवहेलना की जाए उनमें भी हकलाने की प्रवृत्ति घर कर जाती है अर्थात हकलाने को हम आत्मीयता, दृढ़ विश्वास भरकर खत्म नहीं तो बहुत कम तो कर ही सकते हैं।
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