हवा कैसे चलती है 
Hawa Kaise chalti hai 



हम जानते हैं कि आक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड़ जलवाष्प और धूल के कणों का मिश्रण ही हवा है। हम देखते हैं कि हवा कभी स्थिर रहती है, तो कभी बहने लगती है। हम यह भी अनुभव करते हैं कि हवा कभी तेजी से चलती है तो कभी धीरे-धीरे। जब पृथ्वी का कोई स्थान सूर्य के ताप से गर्म होने लगता है तो उस स्थान की वायु भी गर्म होने लगती है। तापमान बढ़ने के कारण उस स्थान की वायु फैलती है जिससे उसका घनत्व कम हो जाता है अर्थात् गर्म हवा हल्की हो जाती है। हल्की होने के कारण हवा वायुमंडल में ऊपर उठने लगती है। परिणाम यह होता है कि उस क्षेत्र में वायु का दबाव कम हो जाता है। वायु के उस दबाव को संतुलित करने के लिए अधिक दबाव वाले ठंडे स्थानों से भरी हवा इस स्थान की ओर बहने लगती है इसी को हम हवा का चलना या बहना कहते हैं।

समुद्र के आसपास के स्थनों में दिन के समय सूर्य की गर्मी से जमीन गर्म हो जाती हैं और वायु हल्की होकर वायुमंडल में ऊपर उठने लगती है इस वायु का स्थान ग्रहण करने के लिए समुद्र के पानी की सतह से ठंडी हवा जमीन की ओर बहने लगती है। रात के समय ठीक इसका उल्टा होता है अर्थात् समुद्र के पानी की अपेक्षा जमीन ठंडी हो जाती है हवाएं जमीन से समुद्र की ओर चलने लगती है। भूमध्य रेखा के पास अधिक गर्मी होने के कारण गर्म हवा ऊपर उठती रहती है। ये गर्म हवाएं उत्तर और दक्षिण की ओर बहती रहती है।

हवाओं की गति पर पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, इस कारण पछुआ हवा पैदा हो जाती है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण ही उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएं दायीं ओर, दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विचलित हो जाती हैं। वायु के बहने की दिशा पहाड़ों की उपस्थित से भी प्रभावित होती है। पहाड़ हवा की गति में अवरोध पैदा करते हैं जिससे उसकी दिशा में परिवर्तन आ जाते हैं।