मरीचिका क्या है?
Marichika Kya hai?



गर्मी के दिनों में रेगिस्तान में यात्रियों को ऐसा आभास होता है कि कुछ दूरी पर पानी भरा है, लेकिन उस स्थान पर पहुंचने पर पानी का नामो-निशान नहीं होता। रेगिस्तान में हिरणों को भी किसी दूर के स्थान पर पानी होने का ऐसा ही आभास होता है, लेकिन जब हिरण उस स्थान पर दौड़ता हुआ पहंचता है तो वहां उसे पानी नहीं मिलता। पानी के इसी भ्रम में हिरण इधर-उधर भागता है, लेकिन पानी न होने के कारण वह भटक-भटक कर मर जाता है। कभी-कभी गर्मियों के दिनों में पक्की सड़क पर चलते हुए भी ऐसा लगता है कि सड़क के आगे कुछ दूरी पर पानी भरा है, लेकिन वास्तव में वहां पानी होता। यह केवल हमारी आंखों का भ्रम होता है। इस दृष्टिभ्रम को मरीचिका या मृगतृष्णा कहते हैं।

मरीचिका या मृगतृष्णा प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होती है। गर्मियों के मौसम में रेगिस्तानों में धरती की सतह बहुत गर्म हो जाती है इससे धरती की सतह के पास की वायु तो गर्म हो जाती है लेकिन ऊपर की वायु अधिक गर्म नहीं हो पाती। गर्म वायु ठंडी वायु की तुलना में हल्की होती है। इस प्रकार धरती की सतह के पास की वायु हल्की हो जाती है लेकिन सतह से कुछ ऊंचाई तक वायु भारी ही रहती हैं। विज्ञान के शब्दों में हल्की वायु का वर्तनांक भारी वायु से कम होता है। इस प्रकार कुछ ऊंचाई तक वायु का वर्तनांक बढ़ता जाता है।

ऐसे वातावरण में पेड़-पौधों से आने वाली प्रकाश की किरणें जब अधिक अपवर्तनांक से कम अपवर्तनांक की ओर जाती है तो अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं। इसे प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं। जैसे-जैसे किरणें आगे बढ़ती हैं वैसे-वैसे उनका वर्तन कोण बढ़ता जाता है। एक स्थिति ऐसी आती है। जब वर्तन कोण 90 से बड़ा हो जाता है, ऐसी स्थिति में प्रकाश उसी माध्यम में पूरी तरह से परावर्तित हो जाता है। इसे हम प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं। इस परावर्तन के कारण पेड़-पौधों की परछाइयां उल्टी दिखने लगती हैं। वे ठीक ऐसे दिखती हैं जैसे पानी में बन रही हों। इससे देखने वाले को पानी का भ्रम हो जाता है। इसी को हम मरीचिका या मृगतृष्णा कहते हैं।