अपने भाई को अनुशासन की आवश्यकताओं के बारे में समझाते हुए पत्र लिखिए।


2/29 सरोजनी नगर 

नई दिल्ली 

दिनांक : 21 अप्रैल, 20... 

प्रिय अनुज रोहण 

सस्नेह आशीर्वाद 

मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि तुम अनुशासन की अवहेलना करते हुए दुर्विनीत और उदंड बनते जा रहे हो। तुम्हारी इस कुत्सित प्रवृत्ति को सुनकर मेरे हृदय को बड़ी ठेस लगी है। तुम्हें मार्गदर्शन के लिए मैं कुछ सुझाव लिखता हूँ। आशा है कि तुम उनको अपने जीवन में ढालने का प्रयत्ल करोगे।

अनुशासन जीवन का मुख्य आधार है। यह उस सदाचार की नींव है, जो जीवन का मुकुट और गौरव है। बड़प्पन और गौरव की भावना को जन्म देने का साधन है। यह जीवन की वह प्राणवायु है, जिसके बिना न तो मानव और न समाज ही कभी भी जीवित रह सकता है। बिना अनुशासन के जीवन वैसे ही है जैसे पतवार के बिना नाव। यह हमारे उन भावों पर अंकुश रखता है, जो हमारे विनाश के निमित्त हो सकते हैं। यदि विदयार्थी जीवन में ही हम इसका शिक्षण सुचारु ढंग से प्राप्त कर लें तो हमारी जीवन नैया पार हो जाती है।

वैसे तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्त्व है, पर विद्यालय में इसका महत्त्व सर्वोपरि है। विदयालय के प्रत्येक छात्र को अनुशासन का पालन करना चाहिए क्योंकि यही जीवन में उन्नति का प्रतीक है। अनुशासन के अभाव में हमारा समाज मिटूटी के घरौंदे के समान गिर पड़ेगा। 

कक्षा में मित्रों के संग, क्रीडा-क्षेत्र में और अन्यत्र भी अनुशासन की आवश्यकता है। अनुशासनप्रिय विदियार्थी ही अच्छा सैनिक बनकर देश का प्रहरी बन सकता है। गांधी जी जैसे कई लोग हुए जिन्होंने अनुशासन को जीवन का एक हिस्सा बनाया और उन्हें विश्व में ख्याति प्राप्त हुई। स्वतंत्र भारत में तो विदयार्थी को अधिकाधिक अनुशासनप्रिय होना चाहिए। आज के विद्यार्थी ही कल के भावी कर्णधार है ऐसे में उन्हीं के हाथों में देश सुरक्षित रह सकता है। 

आशा है कि तुम इस पत्र को पढ़ने के बाद दुर्विनीतता और उदंडता को छोड़कर अनुशासनप्रिय बनोगे। ऐसा करने पर ही तुम अच्छे नागरिक बनकर देश की सेवा कर सकोगे। 

तुम्हारा शुभेच्छु 

कालीचरण 

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