अपने मित्र को पत्र लिखिए कि वह किताबी कीड़ा न बनकर खेलों में भी भाग लिया करें।

1630, मदरसा रोड 

कश्मीरी गेट 

दिल्ली-110006 

दिनांक : 3 दिसंबर 20.... 

प्रिय दिनेश 

स्नेह 

अर्ध वार्षिक परीक्षा में तुम्हारी शानदार सफलता ने मेरा मन प्रसन्नता से भर दिया है। पर यह जानकर मुझे दुख भी हुआ कि तुम पहले से भी अधिक किताबी कीड़े बन गए हो। न तुम खेलों में भाग लेते हो और न ही बाहर भ्रमण के लिए जाते हो। 

यह तो मेरी भी अभिलाषा है कि तुम बड़े विद्वान बनो, पर साथ ही मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम शरीर से भी पूर्ण स्वस्थ रहो। कठोर परिश्रम के बाद शरीर ही नहीं, मस्तिष्क भी अवकाश चाहता है। याद रखो कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। केवल पढ़ना व्यर्थ है, उसका मनन भी करना पड़ता है। उसके लिए समय-समय पर मस्तिष्क को विश्राम देना अनिवार्य है। मैं तुम्हें सही पूरामर्श दे रहा हूँ कि तुम खेलों में अवश्य भाग लिया करो। उससे तुम्हें स्फूर्ति, अनुशासनप्रियता, संगठित होकर काम करने की भावना, संयम और धैर्य आदि गुण प्राप्त होंगे। इन गुणों से जीवन आनंद से भर जाता है। अंग्रेज विदयार्थी कितना ही कार्य में संलग्न हो, वह टेनिस या क्रिकेट खेलने के लिए या पिकनिक पर जाने के लिए समय निकाल ही लेता है। पढ़ाई करके चाहे व्यक्ति कितने ही पदक जीत ले लेकिन जब तक खेलकूद में हिस्सा नहीं लेता वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हो सकता। पुस्तकें केवल मस्तिष्क को भोजन देती हैं। विदयार्थी पूर्णरूप से स्वस्थ तभी हो पाता है जब वह खेलकूद में हिस्सा ले। खेलकूद में हिस्सा लेने से शरीर और मस्तिष्क दोनों का विकास होता है। 

मुझे विश्वास है, तुम मेरी दी गई सलाह को अवश्य मानोगे, शीघ्र ही उस पर अमल करोगे तथा खेलों में भाग लेने के लिए कुछ समय अवश्य निकालोगे। 

पत्रोत्तर की आशा में 

तुम्हारा स्नेही 

विनय 

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