जो करै भक्ति भगवान् की
एक बार नारद मुनि को घमंड हो गया कि वे जितने निःस्वार्थ भाव से भगवान् की भक्ति करते हैं, उतना शायद ही कोई करता होगा; अन्य लोगों का उद्देश्य तो इच्छित वस्तु को प्राप्त करना होता है। भगवान् ने नारद के मन की बात भाँप ली और वे नारद के पास आकर बोले, “मेरा एक प्रिय भक्त अमुक स्थान पर रहता है। यदि तुम जाकर मिल तो तुम्हारा उससे परिचय हो जाएगा।"
नारद जब निर्दिष्ट स्थान पर गए, तो वहाँ एक किसान दिखाई दिया। वे उससे मिले और उसके दैनंदिन कार्य का अवलोकन करने लगे। नारद ने देखा कि उस किसान ने हरि-नाम लिया और वह हल लेकर खेत में जुट गया। वह दिन भर काम करता रहा और रात्रि को सोने से पूर्व एक बार फिर हरि का नाम लेकर निद्राधीन हो गया। यह देख नारद सोचने लगे, "इस गँवार किसान ने दिन में केवल दो बार भगवन्नाम लिया और प्रभु कहते हैं कि यह मेरा प्रिय भक्त है। यह तो मुझे सांसारिक कर्मों में ही लिप्त दिखाई दिया।"
नारदजी तुरंत भगवान् के पास गए और उन्होंने उस किसान के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। इस पर भगवान् बोले, “नारद! अच्छा हुआ ! तुम आ गए। मेरा एक काम है। तुम तेल-भरे इस कटोरे को ले नगर में चारों ओर घूमकर ज्यों-का-त्यों ले आओ। ध्यान रहे, इसकी एक बूँद भी धरती पर गिरने न पाए।"
नारद जब लौटकर आए, तब भगवान् ने पूछा, “नारद, जरा बतलाओ तो, तुम जब परिक्रमा लगा रहे थे, तब तुमने कितनी बार मेरा स्मरण किया?” “एक बार भी नहीं,” नारद ने उत्तर दिया, “क्योंकि मेरा सारा ध्यान तेल के कटोरे पर लगा हुआ था।” भगवान् बोले, “देखो, तेल-भरे एक कटोरे ने तुम्हें मुझसे विमुख कर दिया, जबकि यह किसान अपने परिवार का भरण-पोषण करते हुए भी नियमित रूप से दो बार मेरा स्मरण करता है। क्या वह मेरा प्रिय भक्त न हुआ?" और यह सुन नारदजी लज्जित हो गए।
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