साधो मिले, साहिब मिले
एक बार शेख शिबली के पास दो व्यक्ति दीक्षा लेने के लिए आए। शेख ने महसूस किया कि उनमें से एक दीक्षा लेने का अनधिकारी है और दूसरा अधिकारी। उन्होंने उन दोनों से अलग-अलग आने के लिए कहा ।
जब पहला व्यक्ति आया तो उससे उन्होंने कहा, "यह कलमा पढ़ो -ला इल्लाह इल्लिल्लाह शिबली रसूल अल्लाह।" इस पर वह बोला, “तोबा ! तोबा ।” तब उन्होंने भी कहा, “तोबा ! तोबा !”
उस व्यक्ति ने शेख से पूछा, “आपने तोबा क्यों की?" उन्होंने कहा, "पहले तू बता कि तूने क्यों की?"
"आप तो मामूली फकीर हैं और दावा करते हैं रसूल होने का ।
अब आप बताएँ कि आपने तोबा क्यों की?"
"मैंने इसलिए की कि इतनी ऊँची नाम की दौलत एक मैले हृदय में डालने जा रहा था, लेकिन बच गया। तू हमारे काम का नहीं। यदि बैअत (दीक्षा) लेनी हो, तो किसी मस्जिद के मुल्ला के पास जा ।"
वह जब चला गया, तो दूसरा व्यक्ति आया। उससे भी शेख ने कहा, “पढ़ो - ला इल्लाह इल्लिाह शिबली रसूल अल्लाह !” सुनते ही वह बोला, “हजरत, मैं जाता हूँ।”
"क्यों?" शेख ने पूछा ।
उसने उत्तर दिया, “मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि पैगंबर को मानने वाला तो मैं पहले से ही हूँ। कुरान शरीफ भी मेरे घर में है। अगर आप ही पैगंबर हैं तो मुझे आपके पास आने की जरूरत नहीं। मेरा ख्याल ऊँचा था, लेकिन आपने नीचा ख्याल जाहिर किया, क्योकि मैंने तो सुना था कि मुर्शिद और खुदा एक होते हैं!" यह सुनते ही शेख बोले, “मैं तुम्हें ही बैअत दूँगा। जो खुदा का आशिक है, वह खुदा है। उसमें और मालिक में कोई फरक नहीं।"
0 Comments