पुरुष बचन मत बोल रे
संत फ्रांसिस का एक अनुयायी था, जिसका नाम था एंजिलो। उसे उन्होंने माँन्ते कसाले के स्थानक का संरक्षक नियुक्त किया था। एक बार इस स्थानक में तीन डाकू आए और उन्होंने एंजिलो से कहा कि वे भूखे हैं, इसलिए यदि कुछ खाने को मिले तो मेहरबानी होगी। एंजिलो ने उन्हें फटकारते हुए कहा, “ऐ दुष्टो पापियो, तुम रोज दूसरों की पसीने की कमाई को लूटते हो, उसकी तुम्हें जरा भी शरम नहीं और आज तुम्हारी बेशर्मी की हद हो गई कि यहाँ प्रभु के सेवकों को दिए जाने वाले भोजन की तुम माँग कर रहे हो। यहाँ का प्रसाद तो वही ग्रहण कर सकता है, जिसकी प्रभु पर श्रद्धा है। तुम्हें चूँकि उसके प्रति और उसके प्यारे बालकों के प्रति जरा भी प्रेम नहीं है, इसलिए तुम्हें यहाँ का प्रसाद नहीं दिया जा सकता।” यह सुन डाकू बेहद क्रुद्ध हुए, मगर उसे पवित्र स्थान जान क्रोध पीकर चुपचाप वहाँ से चले गए।
थोड़ी ही देर बाद संत फ्रांसिस आए। जब एंजिलो ने उन्हें सारी बात बताई, उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने एंजिलो से कहा, “तुमने यह अच्छा व्यवहार नहीं किया। जो पापी होते हैं, उन्हें उनकी भर्त्सना और घृणा करके सही रास्ते पर नहीं लाया जाता। उनके साथ नम्रता से आना चाहिए। क्या तुम जानते नहीं कि हकीम की जरूरत तंदुरुस्तों को नहीं, बल्कि बीमारों को होती है। ये डाकू बीमार ही तो थे, तुम्हें उन्हें नम्रतारूपी भोजन देना था। जाओ, उन्हें ढूँढ़ो और ये रोटियाँ दे आओ।" डाकू अधिक दूर नहीं गए थे। एंजिलो ने उन्हें देखा, तो वह उनके चरणों पर गिर पड़ा। उसने अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगी और उन्हें रोटियाँ दीं। यह देख डाकू सोचने लगे, "हम रोज इतना पाप करते हैं, किन्तु इसके लिए हमें कोई खेद नहीं है और एक यह पुण्यात्मा है, जिसे थोड़ी देर पहले कहे हुए कठोर शब्दों का पश्चात्ताप हो रहा है। यही नहीं, यह तो हम भूखों की भूख को शांत करना चाहता है।" वे तुरंत स्थानक गए और उन्होंने संत फ्रांसिस से पाप और दुराचार के लिए क्षमा माँगी। संत ने उनसे कहा, “तुम्हें पश्चाताप हो रहा है, इसलिए निश्चय ही प्रभु क्षमा करेंगे।” डाकुओं ने लोगों को लूटना बंद कर दिया और वे संत फ्रांसिस के शिष्य हो गए।
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